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Showing posts from April, 2020

महाभारत सेना अक्षौहिणी ज्ञान

अक्षौहिणी प्राचीन भारत में सेना का माप हुआ करता था। ये संस्कृत का शब्द है। विभिन्न स्रोतों से इसकी संख्या में कुछ कुछ अंतर मिलते हैं। महाभारत के अनुसार इसमें २१,८७० रथ, २१,८७० हाथी, ६५, ६१० घुड़सवार एवं १,०९,३५० पैदल सैनिक होते थे। इसके अनुसार इनका अनुपात १ रथ:१ गज:३ घुड़सवार:५ पैदल सनिक होता था। इसके प्रत्येक भाग की संख्या के अंकों का कुल जमा १८ आता है। एक घोडे पर एक सवार बैठा होगा, हाथी पर कम से कम दो व्यक्तियों का होना आवश्यक है, एक फीलवान और दूसरा लडने वाला योद्धा, इसी प्रकार एक रथ में दो मनुष्य और चार घोडे रहे होंगें, इस प्रकार महाभारत की सेना के मनुष्यों की संख्या कम से कम ४६,८१,९२० और घोडों की संख्या, रथ में जुते हुओं को लगा कर २७,१५,६२० हुई इस संख्या में दोनों ओर के मुख्य योद्धा कुरूक्षेत्र के मैदान में एकत्र ही नहीं हुई वहीं मारी भी गई। अक्षौहिणी हि सेना सा तदा यौधिष्ठिरं बलम्। प्रविश्यान्तर्दधे राजन्सागरं कुनदी यथा ॥ महाभारत के युद्घ में अठारह अक्षौहिणी सेना नष्ट हो गई थी। महाभारत के आदिपर्व और सभापर्व अनुसार अक्षौहिण्या: परीमाणं नराश्वरथदन्तिनाम्। अक्षौहिणी सेना में कितने पै...

अति दुर्लभ ग्रंथ (अनुलोम-विलोम काव्य)

*अति दुर्लभ एक ग्रंथ ऐसा भी है हमारे सनातन धर्म मे* इसे तो सात आश्चर्यों में से पहला आश्चर्य माना जाना चाहिए --- *यह है दक्षिण भारत का एक ग्रन्थ* क्या ऐसा संभव है कि जब आप किताब को सीधा पढ़े तो राम कथा के रूप में पढ़ी जाती है और जब उसी किताब में लिखे शब्दों को उल्टा करके पढ़े तो कृष्ण कथा के रूप में होती है । जी हां, कांचीपुरम के 17वीं शदी के कवि वेंकटाध्वरि रचित ग्रन्थ "राघवयादवीयम्" ऐसा ही एक अद्भुत ग्रन्थ है। इस ग्रन्थ को ‘अनुलोम-विलोम काव्य’ भी कहा जाता है। पूरे ग्रन्थ में केवल 30 श्लोक हैं। इन श्लोकों को सीधे-सीधे पढ़ते जाएँ, तो रामकथा बनती है और विपरीत (उल्टा) क्रम में पढ़ने पर कृष्णकथा। इस प्रकार हैं तो केवल 30 श्लोक, लेकिन कृष्णकथा (उल्टे यानी विलोम)के भी 30 श्लोक जोड़ लिए जाएँ तो बनते हैं 60 श्लोक। पुस्तक के नाम से भी यह प्रदर्शित होता है, राघव (राम) + यादव (कृष्ण) के चरित को बताने वाली गाथा है ~ "राघवयादवीयम।" उदाहरण के तौर पर पुस्तक का पहला श्लोक हैः वंदेऽहं देवं तं श्रीतं रन्तारं कालं भासा यः । रामो रामाधीराप्यागो लीलामारायोध्ये वासे ॥ १॥ अर्थातः मैं उन ...

हम आर्य हैं - मह्त्व एवं प्रमाण

आर्य शब्द का महत्त्व - हमारी संस्कृति ऋषि-मुनियों द्वारा स्थापित संस्कृति है । यहां वेद, उपनिषद,दर्शन आदि जितने भी प्रामाणिक ग्रंथ हैं उनमें एक बार भी आर्य के अलावा अन्य कोई शब्द नहीं, लेकिन सनातन व आर्य शब्द एक दो बार नहीं हजारों बार आए हैं। यहां राम, कृष्ण , हनुमान लक्ष्मण, सीता, दशरथ, भीम, युधिष्ठिर, अर्जुन आदि सभी महात्माओं के लिए बार-बार आर्य या आर्या शब्द का प्रयोग हुआ है।  यदि आर्य शब्द का गलत अर्थ करते हो तो अपने महापुरुषों को भी गाली दे रहे हो, अपने पूर्वजों को भी गाली दे रहे हो। इसलिए गर्व से कहो हम आर्य हैं ।  *#आर्य_शब्द_के_प्रमाण* संसार का आदि ग्रंथ ऋग्वेद में- *(१) *कृण्वन्तो विश्वमार्यम् । ~ ऋ. ९/६३/५ *अर्थ*- सारे संसार को 'आर्य' बनाओ। "अहं भूमिमददामार्याय" मैं यह भूमि आर्यों को देता हूँ।  मनुस्मृति में_ *(२) मद्य मांसा पराधेषु गाम्या पौराः न लिप्तकाः।* *आर्या ते च निमद्यन्ते सदार्यावर्त्त वासिनः।।* *अर्थ*- वे ग्राम व नगरवासी जो मद्य, मांस और अपराधों में लिप्त न हों तथा सदा से आर्यावर्त्त के निवासी हैं वे 'आर्य' कहे जाते हैं। *_वाल्मीकि रामायण म...