Posts

रघुवंश का आरम्भ

रघुवंश का आरम्भ राजा दिलीप से होता है । जिसका बड़ा ही सुन्दर और विशद वर्णन महाकवि कालिदास ने अपने महाकाव्य रघुवंशम में किया है । कालिदास ने राजा दिलीप, रघु, अज, दशरथ, राम, लव, कुश, अतिथि और बाद के बीस रघुवंशी राजाओं की कथाओं का समायोजन अपने काव्य में किया है। राजा दिलीप की कथा भी उन्हीं में से एक है। राजा दिलीप बड़े ही धर्मपरायण, गुणवान, बुद्धिमान और धनवान थे । यदि कोई कमी थी तो वह यह थी कि उनके कोई संतान नहीं थी । सभी उपाय करने के बाद भी जब कोई सफलता नहीं मिली तो राजा दिलीप अपनी पत्नी सुदक्षिणा को लेकर महर्षि वशिष्ठ के आश्रम संतान प्राप्ति का आशीर्वाद प्राप्त करने पहुंचे । महर्षि वशिष्ठ ने राजा का आथित्य सत्कार किया और आने का प्रयोजन पूछा तो राजा ने अपने निसंतान होने की बात बताई । तब महर्षि वशिष्ठ बोले – “ हे राजन ! तुमसे एक अपराध हुआ है, इसलिए तुम्हारी अभी तक कोई संतान नहीं हुई है ।” तब राजा दिलीप ने आश्चर्य से पूछा – “ गुरुदेव ! मुझसे ऐसा कोनसा अपराध हुआ है कि मैं अब तक निसंतान हूँ। कृपा करके मुझे बताइए ?” महर्षि वशिष्ठ बोले – “ राजन ! एक बार की बात है, जब तुम देवताओं की एक युद्ध में ...

स्यमंतक मणि की कथा (गणेश चतुर्थी पर चन्द्र-दर्शन करने पर अभिशापित हुए मनुष्य को दोष-मुक्त करने वाली कथा)

स्यमंतक मणि की कथा  (गणेश चतुर्थी पर चन्द्र-दर्शन करने पर अभिशापित हुए मनुष्य को दोष-मुक्त करने वाली कथा )  श्रीमद्भागवत पुराण के दसवें स्कंध के अध्याय 56 और 57 में श्री शुकदेव जी महाराज कहते हैं,'' परीक्षित ! सत्राजित ने श्री कृष्ण पर मणि चोरी का झूठा कलंक लगाया था और फिर अपने उस अपराध का मार्जन करने के लिए उसने स्वयं स्यमंतक मणि सहित अपनी कन्या सत्यभामा भगवान श्री कृष्ण को सौंप दी। '' राजा परीक्षित ने पूछा," भगवन् ! सत्राजित ने भगवान श्री कृष्ण का क्या अपराध किया था ? उसे स्यमंतक मणि कहाँ से मिली ? और उसने अपनी कन्या श्री कृष्ण को क्यों सौंप दी ? '' श्री शुकदेव जी कहते है- परीक्षित ! सत्राजित ने श्रीकृष्ण को झूठा कलंक लगाया था। फिर उस अपराध का मार्जन करने के लिए उसने स्वयं स्यमन्तक मणि सहित अपनी कन्या सत्याभामा भगवान श्रीकृष्ण को सौंप दी। राजा परीक्षित ने पूछाः भगवन् ! सत्राजित ने भगवान श्रीकृष्ण का क्या अपराध किया था ? उसे स्यमंतक मणि कहाँ से मिली ? और उसने अपनी कन्या उन्हें क्यों दी ? श्रीशुकदेव जी ने कहाः परीक्षित! सत्राजित भगवान सूर्य का बहुत बड़ा भक्...

किसे कहते है आभामंडल ,औरा, प्रभामंडल, प्राणशक्ति या विद्युत शक्ति

किसे कहते है आभामंडल ,औरा, प्रभामंडल, प्राणशक्ति या विद्युत शक्ति         औरा का लेटीन भाषा मे अर्थ बनता है "सदैव बहने वाली हवा"। औरा इसी अर्थ के मुताबिक यह सदैव गतिशील भी होती है। विभिन्न देशो मे इसे विभिन्न नामो से जाना जाता है, लेकिन सबसे ज्यादा प्रचलित नाम औरा, प्रभामंडल, या ऊर्जामंडल है। प्राणियों का शरीर दो प्रकार का होता है  1. स्थूल शरीर  2. शूक्ष्म शरीर स्थूल शरीर जन्म के बाद जो शरीर सामने दिखाई देता है, वह स्थूल शरीर होता है, इसी स्थूल शरीर का नाम दिया जाता है, इसी के द्वारा संसारी कार्य किये जाते है, इसी शरीर को संसारी दुखों से गुजरना पडता है और जो भी दुख होते हैं | भौतिक शरीर के अतिरिक्त प्रकाषमय और ऊर्जावान एक शरीर और होता है जिसे सूक्ष्म शरीर अथवा आभामण्डल { औरा }कहते हैं।   हमारे शरीर के चारों तरफ जो ऊर्जा का क्षेत्र है वही सूक्ष्म शरीर है। सूक्ष्म शरीर ने हमारे स्थूल शरीर को घेर रहा है। इसे जीवनी शक्ति या प्राण शक्ति भी कहते हैं इसका कार्य सारे शरीर में एवं सूक्ष्म नाडियों में वायु प्रवाह को नियंत्रित करना तथा सूक्ष्म ऊर्जा प्...

श्री हनुमानजी के व्यक्तित्व के अनुकरणीय गुण

श्री हनुमानजी के व्यक्तित्व के अनुकरणीय गुण १- लक्ष्य के प्रति अनुराग = "होइहिं काजु मोहिं हरष बिसेखी" २- ईश्वर के प्रति अनन्य समर्पण = "चलेउ हरषि हियँ धरि रघुनाथा" ३- परमावश्यक जिज्ञासा/कौतूहल= "कौतुक कूदि चढ़ेउ ता ऊपर" ४- निर्धारित समयांतर्गत लक्ष्य प्राप्ति हेतु त्वरा = "जिमि अमोघ रघुपति कर बाना" ५- लक्ष्य के प्रति प्रतिबद्धता = "राम काज कीन्हें बिनु, मोहि कहाँ विश्राम" ६- सर्वोच्च प्राथमिकता= "राम काजु करि फिरि मैं आवौं" ७- सत्यनिष्ठा= "सत्य कहउँ मोहि जान दे माई" ८- परीक्षा में प्रश्नपत्र हल करने की जबर्दस्त तैयारी= "जस जस सुरसा बदन बढ़ावा, तासु दून कपि रूप दिखावा।" ९- त्वरित मेधा या बुद्धि तत्परता= "सत जोजन तेहिं आनन कीन्हा, अति लघु रूप पवनसुत लीन्हा।" १०- धीरमति अर्थात सफलता के उपराँत अहंकार शून्यता= "माँगा विदा ताहि सिरु नावा" ११- छद्मधारी मायावियों की पहचान= "तासु कपट कपि तुरतहिं चीन्हा।" १२- निर्भयता= "तापर धाइ चढ़ेउ भय त्यागे" १३- पथच्युत करने वाले 'उद्दाम ...

भगवान शब्द की परिभाषा क्या है ?

भगवान शब्द की परिभाषा क्या है ?  इसे जानने के लिए हमें उस शब्द पर विचार धारा करना है . उसमें प्रकृति और प्रत्यय रूप 2 शब्द हैं–भग + वान् . भग का अर्थ विष्णु पुराण ,६/५/७४ में बताया गया हैं: “ऐश्वर्यस्य समग्रस्य वीर्यस्य यशसः श्रियः । ज्ञानवैराग्ययोश्चैव षण्णां भग इतीरणा ।।” अर्थात सम्पूर्ण ऐश्वर्य , वीर्य ( जगत् को धारण करने की शक्ति विशेष ) , यश , श्री , सारा ज्ञान , और परिपूर्ण वैराग्य के समुच्चय को भग कहते हैं. इस तरह से भगवान शब्द से तात्पर्य हुआ उक्त छह गुणवाला, और कई शब्दों में ये6 गुण जिसमे हमेशा रहते हैं, उन्हें भगवान कहते हैं, भगोस्ति अस्मिन् इति भगवान् यहाँ भग शब्द से मतुप् प्रत्यय नित्य सम्बन्ध बतलाने के लिए हुआ है .अथवा पूर्वोक्त 6 गुण जिसमे हमेशा रहते हैं, उन्हें भगवान् कहा जाता है मतुप् प्रत्यय नित्य योग (सम्बन्ध) बतलाने के लिए होता है – यह तथ्य वैयाकरण अच्छी तरह  से जानते है— यदि भगवान शब्द को अक्षरश:  सन्धि विच्छेद करे तो: भ्+अ+ग्+अ+व्+आ+न्+अ भ धोतक हैं भूमि तत्व का, अ से अग्नि तत्व सिद्द होता है. ग से गगन का भाव मानना चाहिये. वायू तत्व का उद्घोषक है वा (व...

चिरकुंवारी नर्मदा नदी की अधूरी प्रेम कथा____ मनुज देव भारद्वाज धर्माचार्य मुम्बई

          चिरकुंवारी नर्मदा की अधूरी प्रेम-कथा ******************************************** कहते हैं नर्मदा ने अपने प्रेमी शोणभद्र से धोखा खाने के बाद आजीवन कुंवारी रहने का फैसला किया लेकिन क्या सचमुच वह गुस्से की आग में चिरकुवांरी बनी रही या फिर प्रेमी शोणभद्र को दंडित करने का यही बेहतर उपाय लगा कि आत्मनिर्वासन की पीड़ा को पीते हुए स्वयं पर ही आघात किया जाए। नर्मदा की प्रेम-कथा लोकगीतों और लोककथाओं में अलग-अलग मिलती है लेकिन हर कथा का अंत कमोबेश वही कि शोणभद्र के नर्मदा की दासी जुहिला के साथ संबंधों के चलते नर्मदा ने अपना मुंह मोड़ लिया और उलटी दिशा में चल पड़ीं। सत्य और कथ्य का मिलन देखिए कि नर्मदा नदी विपरीत दिशा में ही बहती दिखाई देती है।  कथा 1👉  नर्मदा और शोण भद्र की शादी होने वाली थी। विवाह मंडप में बैठने से ठीक एन वक्त पर नर्मदा को पता चला कि शोण भद्र की दिलचस्पी उसकी दासी जुहिला(यह आदिवासी नदी मंडला के पास बहती है) में अधिक है। प्रतिष्ठत कुल की नर्मदा यह अपमान सहन ना कर सकी और मंडप छोड़कर उलटी दिशा में चली गई। शोण भद्र को अपनी गलती का एहसास ह...

आंखों की सर्जरी का इतिहास भारतीय है__ मनुज देव भारद्वाज धर्माचार्य मुम्बई

       भारत में #आँखों_की_सर्जरी का इतिहास ******************************************* भारत में 200 वर्ष पहले आँखों की सर्जरी होती थी...शीर्षक देखकर आप निश्चित ही चौंके होंगे ना!!! बिलकुल, अक्सर यही होता है जब हम भारत के किसी प्राचीन ज्ञान अथवा इतिहास के किसी विद्वान के बारे में बताते हैं तो सहसा विश्वास ही नहीं होता. क्योंकि भारतीय संस्कृति और इतिहास की तरफ देखने का हमारा दृष्टिकोण ऐसा बना दिया गया है मानो हम कुछ हैं ही नहीं, जो भी हमें मिला है वह सिर्फ और सिर्फ पश्चिम और अंग्रेज विद्वानों की देन है. जबकि वास्तविकता इसके ठीक विपरीत है. भारत के ही कई ग्रंथों एवं गूढ़ भाषा में मनीषियों द्वारा लिखे गए दस्तावेजों से पश्चिम ने बहुत ज्ञान प्राप्त किया है... परन्तु "गुलाम मानसिकता" के कारण हमने अपने ही ज्ञान और विद्वानों को भुला दिया है. भारत के दक्षिण में स्थित है तंजावूर. छत्रपति शिवाजी महाराज ने यहाँ सन 1675 में मराठा साम्राज्य की स्थापना की थी तथा उनके भाई वेंकोजी को इसकी कमान सौंपी थी. तंजावूर में मराठा शासन लगभग अठारहवीं शताब्दी के अंत तक रहा. इसी दौरान एक विद्वान रा...