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Showing posts from May, 2017

सोमनाथ ज्योतिर्लिंग

सोमनाथ मन्दिर जिसे सोमनाथ ज्योतिर्लिंग भी कहा जाता है, गुजरात (सौराष्ट्र) के काठियावाड़ क्षेत्र के अन्तर्गत प्रभास में विराजमान हैं। इसी क्षेत्र में भगवान श्रीकृष्णचन्द्र ने यदु वंश का संहार कराने के बाद अपनी नर लीला समाप्त कर ली थी। ‘जरा’ नामक व्याध (शिकारी) ने अपने बाणों से उनके चरणों (पैर) को बींध डाला था। शिव पुराण के अनुसार द्वादश ज्योतिर्लिंग में सोमनाथ की गणना प्रथम है। इनके आविर्भाव का प्रकरण प्रजापति दक्ष और चन्द्रमा के साथ जुड़ा है। जब प्रजापति दक्ष ने अपनी अश्विनी आदि सभी सत्ताइस पुत्रियों का विवाह चन्द्रमा के साथ कर दिया, तो वे बहुत प्रसन्न हुए। पत्नी के रूप में दक्ष कन्याओं को प्राप्त कर चन्द्रमा बहुत शोभित हुए और दक्षकन्याएँ भी अपने स्वामी के रूप में चन्द्रमा को प्राप्त कर शोभायमान हो उठी।  चन्द्रमा की उन सत्ताइस पत्नियों में रोहिणी उन्हें अतिशय प्रिय थी, जिसको वे विशेष आदर तथा प्रेम करते थे। उनका इतना प्रेम अन्य पत्नियों से नहीं था। चन्द्रमा की उदासीनता और उपेक्षा का देखकर रोहिणी की अपेक्षा शेष स्त्रियाँ बहुत दुःखी हुई। वे सभी स्त्रियाँ अपने पिता दक्ष की शरण म...

संकटमोचन हनुमानाष्टक

बाल समय रबि भक्षि लियो तब तीनहुँ लोक भयो अँधियारो। ताहि सों त्रास भयो जग को यह संकट काहु सों जात न टारो। देवन आनि करी बिनती तब छाँड़ि दियो रबि कष्ट निवारो। को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥१॥ बालि की त्रास कपीस बसै गिरि जात महाप्रभु पंथ निहारो। चौंकि महा मुनि साप दियो तब चाहिय कौन बिचार बिचारो। कै द्विज रूप लिवाय महाप्रभु सो तुम दास के सोक निवारो। को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥२॥ अंगद के सँग लेन गये सिय खोज कपीस यह बैन उचारो। जीवत ना बचिहौ हम सो जु बिना सुधि लाए इहाँ पगु धारो। हेरि थके तट सिंधु सबै तब लाय सिया-सुधि प्रान उबारो। को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥३॥ रावन त्रास दई सिय को सब राक्षसि सों कहि सोक निवारो। ताहि समय हनुमान महाप्रभु जाय महा रजनीचर मारो। चाहत सीय असोक सों आगि सु दै प्रभु मुद्रिका सोक निवारो। को नहिं जानत है जग में कपि संकटमोचन नाम तिहारो॥४॥ बान लग्यो उर लछिमन के तब प्रान तजे सुत रावन मारो। लै गृह बैद्य सुषेन समेत तबै गिरि द्रोन सु बीर उपारो। आनि सजीवन हाथ दई तब लछिमन के तुम प्र...

भगवान श्री गणेश का ‘विकट’ अवतार

विकटो नाम विख्यात: कामासुरविदाहक:। मयूरवाहनश्चायं सौरब्रह्मधर: स्मृत:।। भगवान श्री गणेश का ‘विकट’ नामक प्रसिद्ध अवतार कामासुर का संहारक है वह मयूर वाहन एवं सौरब्रह्म का धारक माना गया है। भगवान विष्णु जब जालन्धर के वध हेतु वृंदा का तप नष्ट करने गए थे, उसी समय उनके शुक्र से अत्यंत तेजस्वी कामासुर पैदा हुआ। कामासुर दैत्य गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा प्राप्त कर तपस्या के लिए वन में गया। वहां उसने पच्ञाक्षरी मंत्र का जप करते कठोर तपस्या प्रारंभ की। भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए उसने अन्न, जल का त्याग कर दिया। दिन-प्रतिदिन उसका शरीर क्षीण होता गया तथा तेज बढ़ता गया। दिव्य सहस्त्र वर्ष पूरे होने पर भगवान शिव प्रसन्न हुए। आशुतोष ने प्रसन्न होकर उससे वर मांगने के लिए कहा। कामासुर भगवान शिव के दर्शन कर कृतार्थ हो गया। उसने भगवान शंकर के चरणों में प्रणाम कर वर-याचना की- ‘प्रभो! आप मुझे ब्रह्माण्ड का राज तथा अपनी भक्ति प्रदान करें। मैं बलवान, निर्भय एवं मृत्युंजयी होऊं।’ भगवान शिव ने कहा, ‘‘यद्यपि तुमने अत्यंत दुर्लभ तथा देव-दुखद वर की याचना की है तथापि मैं तुम्हारी कामना पूरी करता हू...

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम्

शिव पञ्चाक्षर स्तोत्रम् नागेन्द्रहाराय त्रिलोचनाय भस्माङ्गरागाय महेश्वराय । नित्याय शुद्धाय दिगम्बराय तस्मै ‘न’काराय नमः शिवाय ॥१॥ मन्दाकिनीसलिलचन्दनचर्चिताय नन्दीश्वरप्रमथनाथमहेश्वराय । मन्दारपुष्पबहुपुष्पसुपूजिताय तस्मै ‘म’काराय नमः शिवाय ॥२॥ शिवाय गौरीवदनाब्जवृन्दसूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय । श्रीनीलकण्ठाय वृषध्वजाय तस्मै ‘शि’काराय नमः शिवाय ॥३॥ वसिष्ठकुम्भोद्भवगौतमार्य मुनीन्द्रदेवार्चितशेखराय । चन्द्रार्कवैश्वानरलोचनाय तस्मै ‘व’काराय नमः शिवाय ॥४॥ यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय । दिव्याय देवाय दिगम्बराय तस्मै ‘य’काराय नमः शिवाय ॥५॥ पञ्चाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेच्छिवसन्निधौ । शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते ॥६॥ भावार्थ: जिनके कंठ में साँपों का हार है,जिनके तीन नेत्र हैं, भस्म ही जिनका अंगराग(अनुलेपन) है;दिशाएँ ही जिनका वस्त्र है [अर्थात् जो नग्न हैं] , उन शुद्ध अविनाशी महेश्वर ‘न’कारस्वरूप शिव को नमस्कार है ||  गंगाजल और चन्दन से जिनकी अर्चना हुई है, मंदार पुष्प तथा अन्यान्य कुसुमों से जिनकी सुन्दर पूजा हुई है, उन नंदी के अधिपति प्...

जब किस्मत साथ ना दे तब क्या करें

जब किस्मत साथ ना दे तब क्या करें जब कभी हमारे साथ कुछ अच्छा होता हैं तो हम अक्सर किस्मत से मिला कहते हैं, जैसे आप घर से बाहर किसी ट्रेन से जा रहे थे, ट्रेन मिस हो गयी, अचानक फोन आता हैं कि ट्रेन दुर्घटना ग्रस्त हो गयी जिस डिब्बे मैं आपकी सीट थी सबसे ज्यादा मौत उसी डिब्बे मैं हुई ,तब आप के मुख से यही शब्द निकलता हैं कि किस्मत से बाल बाल बचे । हम जब कुछ अच्छा होता हैं तो यही कहते कि किस्मत का आनन्द के रहे । मगर यही बुरा होने लगता तो भगवान के प्रति दुख जताया करते कि न जाने भगवान किस पाप की सजा दे रहा । दरअसल होता यूं है कि हम करते कम और अपेक्षा ज्यादा की रखते हैं, हम एक नारियल मैं 1 लाख मिल जाये कि कामना करते हैं । बात ये नही की भगवान आपके एक नारियल हेतु बैठा है ।जो देता है उसे आपके नारियल या प्रसाद या धन की जरूरत नही है । कैसे जाने की भाग्य साथ नही दे रहा है नवम भाव भाग्य का है | यहाँ बैठे ग्रह आपके भाग्य को बहुत हद तक प्रभावित करते हैं | यदि यहाँ कोई भी ग्रह न हो तो भी यहाँ स्थित राशी के स्वामी को देखा जाता है |इस घर का मालीक कंहा और किस राशि मे विराजित हैं, कंही पीढित तो ...

जीवन में लीला

कहा जाता है कि रावण भी ब्रह्मज्ञानी था। क्या रावण भी रावण उसकी मर्जी से नहीं था? क्या रामलीला सच में ही राम की लीला थी? निश्चित ही, रावण ब्रह्मज्ञानी था और रावण के साथ बहुत अनाचार हुआ है और दक्षिण में जो आज रावण के प्रति फिर से समादर का भाव पैदा हो रहा है, वह अगर ठीक रास्ता ले ले तो अतीत में हमने जो भूल की है, उसका सुधार हो सकता है। लेकिन वह भी गलत रास्ता लेता मालूम पड़ रहा है दक्षिण का आंदोलन। वे रावण को तो आदर देना शुरू कर रहे हैं, राम को अनादर देना शुरू कर रहे हैं। आदमी की मूढ़ता का अंत नहीं है, वह अतियों पर डोलता है। वह कभी संतुलित तो हो ही नहीं सकता। यहां तुम रावण को जलाते रहे हो, वहां अब उन्होंने राम को जलाना शुरू किया है। तुमने एक भूल की थी, अब वे दूसरी भूल कर रहे हैं। रावण ब्रह्मज्ञानी था। यह भी परमात्मा की मर्जी थी कि वह यह अभिनय अदा करे। उसने यह भली तरह अदा किया। और कहते हैं, जब राम के बाण से वह मरा तो उसने कहा कि मेरी जन्मों-जन्मों की आकांक्षा पूरी हुई कि राम के हाथों मारा जाऊं, इससे बड़ी और कोई आकांक्षा हो भी नहीं सकती, क्योंकि जो राम के हाथ मारा गया, वह सीधा मोक...

उठो! जागो!! और साधक बनो

👉 उठो! जागो!! और साधक बनो!!! 🔵 ध्यान की गहनता में अदृश्य स्पन्दनों के साथ गुरुदेव की वाणी स्फुरित हो उठी-‘‘उठो! जागो!! और देखो, जैसा बाह्य जगत् है वैसा ही एक अन्तर्जगत् भी है। वत्स! ...

भागवत में लिखी ये 10 बातें इस भयंकर कलयुग में हो रही हैं सच

🌻भागवत में लिखी ये 10  बातें इस भयंकर कलयुग में हो रही हैं सच ...   1.ततश्चानुदिनं धर्मः सत्यं शौचं क्षमा दया । कालेन बलिना राजन् नङ्‌क्ष्यत्यायुर्बलं स्मृतिः ॥   कलयुग में धर...

रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य

रामचरित मानस के कुछ रोचक तथ्य 1. मानस में राम शब्द = 1443 बार आया है 2. मानस में सीता शब्द = 147 बार आया है 3. मानस में जानकी शब्द = 69 बार आया है 4. मानस में बैदेही शब्द = 51 बार आया है 5. मानस में बड़भागी शब्द = 58 बार आया है 6. मानस में कोटि शब्द = 125 बार आया है 7. मानस में एक बार शब्द = 18 बार आया है 8. मानस में मन्दिर शब्द = 35 बार आया है 9. मानस में मरम शब्द = 40 बार आया है 10. लंका में राम जी = 111 दिन रहे 11. लंका में सीताजी = 435 दिन रहीं 12. मानस में श्लोक संख्या = 27 है 13. मानस में चोपाई संख्या = 4608 है 14. मानस में दोहा संख्या = 1074 है 15. मानस में सोरठा संख्या = 207 है 16. मानस में छन्द संख्या = 86 है 17. सुग्रीव में बल था = 10000 हाथियों का 18. सीता रानी बनीं = 33वर्ष की उम्र में 19. मानस रचना के समय तुलसीदास की उम्र = 77 वर्ष थी 20. पुष्पक विमान की चाल = 400 मील/घण्टा थी 21. रामादल व रावण दल का युद्ध = 87 दिन चला 22. राम रावण युद्ध = 32 दिन चला 23. सेतु निर्माण = 5 दिन में हुआ 24. नलनील के पिता = विश्वकर्मा जी हैं 25. त्रिजटा के पिता =...

स्वास्थय दोहे

पानी में गुड डालिए, बीत जाए जब रात सुबह छानकर पीजिए, अच्छे हों हालात धनिया की पत्ती मसल, बूंद नैन में डार! दुखती अँखियां ठीक हों, पल लागे दो-चार ऊर्जा मिलती है बहुत, पिएं गुनगुन...

रामायण-कथा

※➖❖➖▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩➖❖➖※ ⇨∥☞   रामायण-कथा    ☜∥⇦ ※➖❖➖▩ஜ ۩۞۩ ஜ▩➖❖➖※ हिन्दू शास्त्रों के अनुसार भगवान राम, विष्णु के अवतार थे। इस अवतार का उद्देश्य मृत्युलोक में मानवजाति को आद...