ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है सृष्टि का रहस्य

"ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है सृष्टि का सारा रहस्य"

कर्पूरगौरं करुणावतारं संसारसारं भुजगेन्द्रहारम्।
सदा बसन्तं हृदयारबिन्दे भबं भवानीसहितं नमामि।।

सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस धरती का पहला ज्योतिर्लिंग है।

आदरणीय प्रिय बन्धुओं ये पूरा जगत शिवमय है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि क्यों होती है शिवलिंग की पूजा। क्या आप सही मायने में शिवलिंग का रहस्य जानते हैं। शिव का असली स्वरूप क्या है। क्यों शिव ही इस जगत के आधार हैं।

क्या हुआ था जब पहली बार विधाता ने इस सृष्टि की रचना शुरू की थी। दरअसल शिव के ज्योतिर्लिंगों से जुड़ा है सृष्टि का सारा रहस्य। हर ज्योतिर्लिंग से जुड़ी है मनोरथ और सिद्धि के तमाम सीढ़ियां।

लेकिन पहले जानते हैं शिव कौन हैं। कैसे धारण करते हैं वो इस जगत को। कैसे देवी भगवती शक्ति बनकर हमेशा उनके साथ रहती हैं।

एक राजा थे उनकी सत्ताईस कन्याएं थीं। उनकी शादी होती है। लेकिन एक कन्या की वजह से सारी कहानी बदल जाती है। उस कन्या का प्यार कैसे चंद्रमा के लिए शाप का विषय बनता है। और फिर कैसे पैदा होता है शिव का पहला ज्योतिर्लिंग।

देश में शिव के जो बारह ज्योतिर्लिंग हैं उनके बारे में मान्यता है कि अगर सुबह उठकर सिर्फ एक बार भी बारहों ज्योतिर्लिंगों का नाम ले लिया जाए तो सारा काम हो जाता है।

सोमनाथ का ज्योतिर्लिंग इस धरती का पहला ज्योतिर्लिंग है। इस ज्योतिर्लिंग की महिमा बड़ी विचित्र है। शिव पुराण की कथा के हिसाब से प्राचीन काल में राजा दक्ष ने अश्विनी समेत अपनी सत्ताईस कन्याओं की शादी चंद्रमा से की थी।

सत्ताईस कन्याओं का पति बन के चंद्रमा बेहद खुश हुए। कन्याएं भी चंद्रमा को वर के रूप में पाकर अति प्रसन्न थीं। लेकिन ये प्रसन्नता ज्यादा दिनों तक कायम नहीं रह सकी। क्योंकि कुछ दिनों के बाद चंद्रमा उनमें से एक रोहिणी पर ज्यादा मोहित हो गए।

ये बात जब राजा दक्ष को पता चली तो वो चंद्रमा को समझाने गए। चंद्रमा ने उनकी बातें सुनीं, लेकिन कुछ दिनों के बाद फिर रोहिणी पर उनकी आसक्ति और तेज हो गई।

जब राजा दक्ष को ये बात फिर पता चली तो वो गुस्से में चंद्रमा के पास गए। उनसे कहा कि मैं तुमको पहले भी समझा चुका हूं। लेकिन लगता है तुम पर मेरी बात का असर नहीं होने वाला। इसलिए मैं तुम्हें शाप देता हूं कि तुम क्षय रोग के मरीज हो जाओ।

राजा दक्ष के इस श्राप के तुरंत बाद चंद्रमा क्षय रोग से ग्रस्त होकर धूमिल हो गए। उनकी रौशनी जाती रही। ये देखकर ऋषि मुनि बहुत परेशान हुए। इसके बाद सारे ऋषि मुनि और देवता इंद्र के साथ भगवान ब्रह्मा की शरण में गए।

फिर ब्रह्मा जी ने उन्हें एक उपाय बताया। उपाय के हिसाब से चंद्रमा को सोमनाथ के इसी जगह पर आना था। भगवान शिव का तप करना था और उसके बाद ब्रह्मा जी के हिसाब से भगवान शिव के प्रकट होने के बाद वो दक्ष के शाप से मुक्त हो सकते थे।

इस जगह पर चंद्रमा आए। भगवान वृषभध्वज का महामृत्युंजय मंत्र से पूजन किया।

फिर छह महीने तक शिव की कठोर तपस्या करते रहे। चंद्रमा की कठोर तपस्या को देखकर भगवान शिव खुश हुए। उनके सामने आए और वर मांगने को कहा।

चंद्रमा ने वर मांगा कि हे भगवन अगर आप खुश हैं तो मुझे इस क्षय रोग से मुक्ति दीजिए और मेरे सारे अपराधों को क्षमा कर दीजिए।

भगवान शिव ने कहा कि तुम्हें जिसने शाप दिया है वो भी कोई साधारण व्यक्ति नहीं है। लेकिन मैं तुम्हारे लिए कुछ करूंगा जरूर। इसके बाद भगवान शिव ने चंद्रमा के साथ जो किया उसे देखकर चंद्रमा न ज्यादा खुश हो सके और न ही उदास रह सके। लेकिन भगवान शिवजी ने ऐसा किया क्या।

चंद्रमा की तपस्या से भगवान शिवजी प्रसन्न थे। उन्हें वर देना चाहते थे लेकिन संकट देखिए। जिन्होंने चंद्रमा को श्राप दिया है वो भी कोई साधारण नहीं थे। असमंजस था ऐसा असमंजस जिसमें भगवान शिवजी भी पड़ गए थे।

भगवान शिवजी एक रास्ता निकालते हैं। चंद्रमा से कहते हैं कि मैं तुम्हारे लिए ये कर सकता हूं एक माह में जो दो पक्ष होते हैं, उसमें से एक पक्ष में तुम निखरते जाओगे। लेकिन दूसरे पक्ष में तुम क्षीण भी होओगे। ये पौराणिक राज है चंद्रमा के शुक्ल और कृष्ण पक्ष का जिसमें एक पक्ष में वो बढ़ते हैं और दूसरे में वो घटते जाते हैं।

भगवान शिवजी के इस वर से भी चंद्रमा काफी खुश हो गए। उन्होंने भगवान शिवजी का आभार प्रकट किया उनकी स्तुति की।

यहां पर एक बड़ा अच्छा रहस्य है। अगर आप साकार और निराकर शिव का रहस्य जानते हैं तो आप इसे समझ जाएंगे, क्योंकि चंद्रमा की स्तुति के बाद इसी जगह पर भगवान शिव निराकार से साकार हो गए थे। और साकार होते ही देवताओं ने उन्हें यहां सोमेश्वर भगवान के रूप में मान लिया। यहां से भगवान शिवजी तीनों लोकों में सोमनाथ के नाम से विख्यात हुए।

जब शिवजी सोमनाथ के रूप में यहां स्थापित हो गए तो देवताओं ने उनकी तो पूजा की ही, चंद्रमा को भी नमस्कार किया। क्योंकि चंद्रमा की वजह से ही शिव का ये स्वरूप इस जगह पर मौजूद है।

समय गुजरा। इस जगह की पवित्रता बढ़ती गई। शिव पुराण में कथा है कि जब शिव सोमनाथ के रूप में यहां निवास करने लगे तो देवताओं ने यहां एक कुंड की स्थापना की। उस कुंड का नाम रखा गया सोमनाथ कुंड।

कहते हैं कि कुंड में भगवान शिव और ब्रह्मा का साक्षात निवास है। इसलिए जो भी उस कुंड में स्नान करता है, उसके सारे पाप धुल जाते हैं। उसे हर तरह के रोगों से निजात मिल जाता है।

शिव पुराण में लिखा है कि असाध्य से असाध्य रोग भी कुंड में स्नान करने के बाद खत्म हो जाता है। लेकिन एक विधि है जिसको मानना पड़ता है। अगर कोई व्यक्ति क्षय रोग से ग्रसित है तो उसे उस कुंड में लगातार छह माह तक स्नान करना होगा। ये महिमा है सोमनाथ की।

शिव पुराण में ये भी लिखा है कि अगर किसी वजह से आप सोमनाथ के दर्शन नहीं कर पाते हैं तो सोमनाथ की उत्पति की कथा सुनकर भी आप वही पौराणिक लाभ उठा सकते हैं।

इस तीर्थ पर और भी तमाम मुरादें हैं जिन्हें पूरा किया जा सकता है। क्योंकि ये तीर्थ बारह ज्योतिर्लिंगों में से सबसे महत्वपूर्ण है।

धरती का सबसे पहला ज्योतिर्लिंग सौराष्ट्र में काठियावाड़ नाम की जगह पर स्थित है। इस मंदिर में जो सोमनाथ देव हैं उनकी पूजा पंचामृत से की जाती है। कहा जाता है कि जब चंद्रमा को शिवजी ने शाप मुक्त किया तो उन्होंने जिस विधि से साकार शिव की पूजा की थी, उसी विधि से आज भी सोमनाथ की पूजा होती है।

यहां जाने वाले जातक अगर दो सोमवार भी शिव की पूजा को देख लेते हैं तो उनके सारे मनोरथ पूरे हो जाते हैं। अगर आप सावन की पूर्णिमा में कोई मनोरथ लेकर आते हैं तो भरोसा रखिए उसके पूरा होने में कोई विलंब नहीं होगा।

अगर आप शिवरात्रि की रात यहां महामृत्युंजय मंत्र का महज एक सौ आठ बार भी जाप कर देते हैं तो वो सारी चीजें आपको हासिल हो सकती हैं जिसके लिए आप परेशान हैं।

ये है इस धरती के सबसे पहले ज्योतिर्लिंग की महिमा। शिव पुराण में ये कथा महर्षि सूत जी ने दूसरे ऋषियों को सुनाई है। जो जातक इस कथा को ध्यान से सुनते हैं या फिर सुनाते हैं उन पर चंद्रमा और शिव दोनों की कृपा होती है। चंद्रमा शीतलता के वाहक हैं। उनके खुश होने से इंसान मानसिक तनाव से दूर होता है। और शिव इस जगत के सार हैं। उनके खुश होने से जीवन के सारे मकसद पूरे हो जाते हैं।

ॐ नागेंद्रहाराय त्रिलोचनाय भस्मांगरागाय महेश्वराय।
नित्याय शुद्धाय दिगंबराय तस्मै "न" काराय नमः शिवाय॥

हे महेश्वर! आप नागराज को हार स्वरूप धारण करने वाले हैं। हे (तीन नेत्रों वाले) त्रिलोचन, आप भस्म से अलंकृत, नित्य (अनादि एवं अनंत) एवं शुद्ध हैं। अम्बर को वस्त्र समान धारण करने वाले दिगम्बर शिव, आपके 'न' अक्षर द्वारा जाने वाले स्वरूप को नमस्कार है।

मंदाकिनी सलिल चंदन चर्चिताय नंदीश्वर प्रथमनाथ महेश्वराय।
मंदारपुष्प बहुपुष्प सपूजिताय तस्मै "म" काराय नमः शिवाय॥

चन्दन से अलंकृत, एवं गंगा की धारा द्वारा शोभायमान, नन्दीश्वर एवं प्रमथनाथ के स्वामी महेश्वर आप सदा मन्दार एवं बहुदा अन्य स्रोतों से प्राप्त पुष्पों द्वारा पूजित हैं। हे शिव, आपके 'म' अक्षर द्वारा जाने वाले रूप को नमन है।

शिवाय गौरी वदनाब्जवृंद सूर्याय दक्षाध्वरनाशकाय।
श्री नीलकंठाय वृषध्वजाय तस्मै "शि" काराय नमः शिवाय॥

हे धर्मध्वजधारी, नीलकण्ठ, शि अक्षर द्वारा जाने जाने वाले महाप्रभु, आपने ही दक्ष के दम्भ यज्ञ का विनाश किया था। माँ गौरी के मुखकमल को सूर्य समान तेज प्रदान करने वाले शिव, आपके 'शि' अक्षर से ज्ञात रूप को नमस्कार है।

वशिष्ठ कुम्भोद्भव गौतमार्य मुनींद्र देवार्चित शेखराय।
चंद्रार्क वैश्वानर लोचनाय तस्मै "व" काराय नमः शिवाय॥

देवगण एवं वशिष्ठ, अगस्त्य, गौतम आदि मुनियों द्वारा पूजित देवाधिदेव! सूर्य, चन्द्रमा एवं अग्नि आपके तीन नेत्र समान हैं। हे शिव !! आपके 'व' अक्षर द्वारा विदित स्वरूप को नमस्कार है।

यक्षस्वरूपाय जटाधराय पिनाकहस्ताय सनातनाय।
दिव्याय देवाय दिगंबराय तस्मै "य" काराय नमः शिवाय॥

हे यज्ञ स्वरूप, जटाधारी शिव आप आदि, मध्य एवं अंत रहित सनातन हैं। हे दिव्य चिदाकाश रूपी अम्बर धारी शिव !! आपके 'य' अक्षर द्वारा जाने जाने वाले स्वरूप को नमस्कार है।

पंचाक्षरमिदं पुण्यं यः पठेत् शिव सन्निधौ।
शिवलोकमवाप्नोति शिवेन सह मोदते॥

जो कोई भगवान शिव के इस पंचाक्षर मंत्र का नित्य उनके समक्ष पाठ करता है वह शिव के पुण्य लोक को प्राप्त करता है तथा शिव के साथ सुखपूर्वक निवास करता है।
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