भक्ति के 64 अंग

भक्ति के 64 अंग

1. गुरु के चरणों में आश्रय ग्रहण करना
2. उनसे दीक्षा प्राप्त करना
3. गुरु की सेवा
4. सच्चे धर्म की शिक्षा और जिज्ञासा
5. साधुजनों के मार्ग का अनुसरण
6. भोग विलास का त्याग
7. तीर्थाें में निवास
8. निर्वाह मात्र के लिए वस्तु ग्रहण करना
9. उपवास
10. आंवला, पीपल, विप्र और मानव का सम्मान
11. सेवा अपराध और नाम अपराध से दूर रहना
12. कुसंग का त्याग
13. अनेक शिष्य न बनाना
14. अनेक ग्रंथों का आंशिक अध्ययन और व्याख्या आदि की कला का वर्जन
15. लाभ और हानि में समबुद्धि
16. शोकादि के वशीभूत न होना
17. देवताओं की निंदा न सुनना
18. शास्त्रों की निंदा न सुनना
19. विषय-भोग की चर्चा न सुनना
20. किसी भी प्राणी को शरीर, मन और वाणी से दुख न देना
21. श्रवण
22. कीर्तन
23. स्मरण
24. पूजन
25. वंदन
26. परिचर्चा
27. दास्य
28. सख्य
29. आत्मनिवेदन
30. श्रीविग्रह के सामने नृत्य करना
31. गीत
32. विज्ञप्ति अर्थात अपने भावों को भगवान के सम्मुख कहना
33. दण्डवत प्रणाम
34. अभ्युत्थान अर्थात भगवान या भक्त पधार रहे हों तो उठकर खड़े होना या आगे बढ़कर सम्मान करना
35. अनुव्रज्या अर्थात भक्त या भगवान यात्रा कर रहे हों तो पीछे-पीछे कुछ दूर तक जाना
36. तीर्थ और मंदिर में गमन
37. परिक्रमा
38. स्तव पाठ
39. जप
40. संकीर्तन
41. भगवान को निवेदित माला, धूप, और गंध ग्रहण करना
42. महाप्रसाद सेवन
43. भगवान की आरती और उनके महोत्सवों का दर्शन
44. श्रीमूर्ति दर्शन
45. अपनी प्यारी वस्तु भगवान को अर्पण करना
46. ध्यान
47. तुलसी सेवा
48. मानव सेवा
49. पवित्र धाम में वास
50. श्रीमद्भागवत का आस्वादन
51. भगवान के लिए ही अपनी सारी चेष्टाएं करना
52. उनकी कृपा के लिए प्रतीक्षा
53. भक्तों के साथ भगवान का प्रकटोत्सव मनाना
54. सब तरह की शरणागति
55. कार्तिक आदि व्रतों का पालन
56. धार्मिक चिह्न धारण करना
57. हरिहर नाम के अक्षरों को शरीर पर धारण करना
58. निर्माल्य अर्थात भगवान की माला आदि वस्तुएं धारण करना
59. चरणामृत पान
60. सत्संग
61. नाम कीर्तन
62. श्रीमद्भागवत का श्रवण
63. धर्म नगरी में वास
64. श्रद्धापूर्वक श्रीमूर्ति की सेवा।

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