सदाचार के सूत्र
सदाचार के सूत्र
(1) चरित्र की रक्षा यत्नपूर्वक करनी चाहिए, धन तो आता और जाता रहता है। धन से क्षीण क्षीण नहीं अपितु चरित्रहीन तो मरे हुए के समान ही है।
(2) सदाचार ही जीवन है और दुराचार मृत्यु है। अत: जीवन सदाचार युक्त होना चाहिए।
(3) सादा जीवन उच्च विचार, ये एक अच्छे मनुष्य के लक्षण हैं।
(4) सदैव सत्य का आचरण करो, झूठे मनुष्य का कोई विश्वास नहीं करता।
(5) बिना विचारे कोई भी काम मत करो क्योंकि इससे बड़ी हानि हो सकती है।
(6) केवल ईश्वर से डरो, फिर किसी से डरने की नौबत ही नहीं आ सकती।
(7) अण्डा और मांस मनुष्यों का आहार नहीं है। जो व्यक्ति अपने मन,बुद्धि शुद्ध करना चाहते हैं, उन्हें भूलकर भी इनका सेवन नहीं करना चाहिए।
(8) जिन परिवारों में नारी जाति का सम्मान होता है और वे प्रसन्न रहती हैं, वहां उत्तम आत्मायें जन्म लेती हैं।
(9) जहां नारी दु:खी होकर अपने आंखों से आंसू गिराती हैं वहां विनाश के बादल मंडराने लगते हैं।
(10) जिस परिवार या राष्ट्र में पशु सताये जाते हैं, वहां गरीबी आ जाती है।
(11) पराया धन और पराई स्त्री इनको दूर से ही त्याग दें।
(12) ब्राह्मण वही है जो सत्यवादी है।
(13) वाणी से सदा मीठे और हितकारी वचन बोलो।
(14) कटु वचन बोलने से अपने भी पराये हो जाते हैं।
(15) निर्दयी मनुष्य कभी धर्मात्मा नहीं हो सकता। जहां दया है वहां धर्म है।
(16) स्त्री, बालक, वृद्ध और रोगी, ये चार प्रकार के मनुष्य दया के पात्र हैं।
(17) अत्यन्त अभिमान, अधिक बोलना, त्याग का अभाव, क्रोध, अपना ही पेट पालने की चिन्ता और मित्र के साथ द्रोह (धोखा) करना ये छ: तीखी तलवारें देहधारियों की आयु को घटाती हैं।
(18) जो मनुष्य अपने साथ जैसा बर्ताव करे उसके साथ वैसा ही बर्ताव करना चाहिए यही नीति है। कपट का आचरण करने वालों के साथ कपटपूर्ण और अच्छा बर्ताव करने वालों के साथ साधु भाव से बर्ताव करना चाहिए।
(19) ब्राह्मण, गौ, कुटुम्बी, बालक, स्त्री, अन्नदाता और शरणागत ये अवध्य होते हैं, इन्हें नहीं मारना चाहिए।
(20) जिन्हें अपने हित की बात भी अच्छी नहीं लगती, ऐसे मनुष्यों को योग-क्षेम की सिद्धि नहीं हो पाती।
(21) परहित और परोपकार करने वाले को मान-अपमान सहना ही पड़ता है।
(22) दुष्ट मनुष्यों का स्वभाव मेघ के समान चंचल होता है। ये सहसा क्रोध कर बैठते हैं, अकारण ही प्रसन्न हो जाते हैं।
(23) प्रत्येक दशा में सूर्य उदय होने से पहले उठो। सूर्य उदय होने पर सोते रहने वाले अभागे मनुष्य का सब कुछ नष्ट हो जाता है।
(24) व्यभिचारी (चरित्रहीन) मनुष्य शीघ्र मृत्यु का ग्रास बन जाता है।