क्रोध पर नियंत्रण
सफल होने के लिए क्रोध पर नियंत्रण रखना चाहिए। कभी-कभी यह बहुत कठिन हो जाता है पर इसका दूर गामी परिणाम अच्छा होता है। यह एक प्रकार की साधना है। कोई आपकी आलोचना करे तो क्रोधित न हों। इसी प्रकार कोई प्रशंसा करे तो खुश भी नही होना चाहिए। दोनों स्थितियों में सहज भाव का प्रदर्शन करना चाहिये, सम दृष्टि रखनी चाहिए।
कुछ लोग कहते हैं कि परिवार की एकता के लिए किसी के बुरे बर्ताव पर ध्यान नही देना चाहिए, पर ये ठीक नही लगता। एक सीमा के बाद किसी का बुरा बर्ताव सहना कठिन लगने लगता है। कुछ लोग कहते हैं- बड़े कुछ भी कहें, उसे आशीर्वाद मानना चाहिए। पर बड़े जब सरेआम अत्याचार करने पर, आरोप और लांछन लगाने पर उतारू हों तो चुप हो कर रहना उनके आरोपों को सही साबित करना है। और अगर कोई द्वेष वश कुछ हानि करे, सामजिक या आर्थिक, परिपक्व अवस्था में होने के बाद भी बार बार दुष्टता पूर्ण बर्ताव किए जा रहा है, तो क्षमा करना मुश्किल हो जाता है। ऐसे में स्वाभिमान की रक्षा नही होती तो एक दिन भयावह स्थिति आ जाती है, और हम उसके शिकार होंगे। इसलिए इसका ख्याल रखना चाहिए कि यह सब एक सीमा तक ही ठीक है। जब सीमा पर होने लगे तब स्वयं को उनके दुर्व्यवहार का पात्र नही बनने देना है।
परिवार हो या रिश्तेदार, किसी को यह हक़ नहीं है कि वो हमेशा नीचा दिखाने का अवसर खोजता रहे। इस विचार से हर कोई सहमत होगा कि अपशब्द कहने का अधिकार किसी को नहीं है। परिवार का ही कोई भी हो, अगर वह सामाजिक लिहाज नहीं रखता, तो ऐसे व्यक्ति से मिलने में भय लगता है।
अपने क्रोध को सकारात्मक तरीके से व्यक्त करें, स्वयं को हीन स्थिति में न आने दें और न ही भयभीत हों। अपनी आंतरिक शक्ति और साहस को बनाये रखें। अपने को स्पष्ट तरीके से पेश करें, अपनी बात स्पष्ट कहें।
अगर आप किसी ऐसे व्यक्ति के सामने आ जाते हैं जिसकी उपस्थिति में आप असहज हो जाते है, तो उससे अपने को अलग कर लें, वहाँ से हट जाएँ। पर अगर ऐसा सम्भव न हो, तो जब तक जरुरी हो, रुकें, उसके बाद हट जाएँ। किसी नकारात्मक व्यक्ति को अपनी प्रसन्नता नष्ट करने का मौका न दें। आप अपनी योग्यता और श्रेष्ठता की और जाएँ।
दुष्ट लोगों में हमेशा एक असुरक्षा की भावना रहती है, इसलिए वे नीचा दिखाने के कोई मौके नही छोड़ते। जीवन में यह सब झेलना पड़ता है, प्रायः सभी को। पर आपकी अपनी श्रेष्ठता आपको सफल बना देती है।