नवधा भक्ति

श्री राम चरित मानस में नवधा भक्ति का वर्णन है...

नौ प्रकार की भक्ति होती है|
इसमें कोई एक भी भक्ति यदि हमारे पास है तो हम भगवान के भक्त है अन्यथा नहीं...

- प्रथम भगति संतन कर संगा ।
- दूसरि रति मम कथा प्रसंगा ।।

(१) प्रथम भक्ति संत,सज्जन तथा सद्पुरुषों की संगति है|

(२) दूसरी भगवान की कथा प्रसंग को मन,बुद्धि तथा चित्त लगाकर सुनना,कहना और समझना|

गुरुपद पंकज सेवा, तीसरि भगति अमान ।
चौथि भगति मम गुन गन, करइ कपट तजि गान ।।

(३) तीसरी भक्ति गुरुजनों अर्थात् अपने बृद्धजनों की सेवा अमान यानी अभिमान शून्य होकर कर करना | सेवा करते समय मन में यह भावना नही होनी चाहिए कि मैं ही सबसे अधिक सेवा कर रहा हूँ , मै ही सेवक हूँ| सेवक को विनम्र होना चाहिए|

(४) चौथी भक्ति कपट छोड़कर अर्थात् भक्ति का दिखावा छोड़कर  मेरे गुण समूह का चिन्तन मनन करे ।

मंत्र जाप मम दृढ़ विस्वासा ।
पंचम भजन सो बेद प्रकासा ||

छठ दम सील बिरति बहु करमा ।
निरत निरंतर सज्जन धरमा ||

सातवँ सम मोहि मय जग देखा ।
मोतें संत अधिक करि लेखा ||

(५) पाँचवी भक्ति मेरे राम मन्त्र का निरंतर जप और मुझमें दृढ़ विश्वास |

(६) छठवीं भक्ति है अपने इन्द्रियों पर नियन्त्रण, शील,
किसी भी कार्य मे आसक्ति न होना | निरंतर सज्जन पुरुषों के आचरण जैसा व्यवहार करना |

(७) सातवीं भक्ति है संसार के सभी व्यक्तियों को सम भाव से राममय देखना और संतों को मुझसे भी अधिक मानना|

आठवँ जथालाभ संतोषा ।
सपनेहुँ नहि देखइ परदोषा ।।

नवम सरल सब सन छलहीना ।
मम भरोस हियँ हरष न दीना ||

(८) आठवीं भक्ति है जो कुछ मिल जाय उसी में संतोष करना और स्वप्न मे भी किसी दूसरे में दोषोंको न देखना...

(९) नवीं भक्ति है सरलता और सबके साथ कपट रहित व्यवहार करना,हृदय में मेरा भरोसा रखना और किसी भी दशा में सम भाव में रहना |

भक्ति के विना मन निर्मल नहीं हो सकता | और भगवान को निर्मल मनवाला ही प्रिय है ||
निर्मल मन जन सो मोहि पावा ।
मोहि कपट छल छिद्र न भावा ।।

जय जय श्री राम ।....

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