मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना
शुभोदयम
मुंडे मुंडे मतिर्भिन्ना कुंडे कुंडे नवं पय:।
जातौ जातौ नवाचारा: नवा वाणी मुखे मुखे ।।
जितने मनुष्य हैं उतने विचार हैं, एक ही स्थान के अलग अलग कुंओं के पानी का स्वाद अलग अलग होता है ।
एक ही संस्कार के लिए अलग अलग जातियों में अलग अलग रीति रिवाज होते है ।
तथा एक ही घटना का वर्णन हर व्यक्ति अपने ढंग से अलग अलग करता है ।
अर्थात् विभिन्नता प्रकृति का नियम है.
सुप्रभातम
सुदिनम् कल्याणमस्तु
भौमवासरे लोकाः समस्ता सुखिनः भवन्तु