तुलसी वचन
एक घड़ी आधी घड़ी ,आधी की पुनि आध |
तुलसी संगत साध की, हरे कोटि अपराध ||
श्रीरामचरितमानस के रचयिता गोस्वामी तुलसीदास जी हिंदी साहित्य के महान कवि थे| तुलसीदास जी के दोहे ज्ञान-सागर के समान हैं| आइये हम इन दोहों को अर्थ सहित पढ़ें और इनसे मिलने वाली सीख को अपने जीवन में उतारें.
राम नाम मनिदीप धरु जीह देहरीं द्वार |
तुलसी भीतर बाहेरहुँ जौं चाहसि उजिआर ||
अर्थ: तुलसीदासजी कहते हैं कि हे मनुष्य ,यदि तुम भीतर और बाहर दोनों ओर उजाला चाहते हो तो मुखरूपी द्वार की जीभरुपी देहलीज़ पर राम-नामरूपी मणिदीप को रखो |
नामु राम को कलपतरु कलि कल्यान निवासु |
जो सिमरत भयो भाँग ते तुलसी तुलसीदास ||
तुलसी देखि सुबेषु भूलहिं मूढ़ न चतुर नर |
सुंदर केकिहि पेखु बचन सुधा सम असन अहि ||
सूर समर करनी करहिं कहि न जनावहिं आपु |
बिद्यमान रन पाइ रिपु कायर कथहिं प्रतापु ||
सहज सुहृद गुर स्वामि सिख जो न करइ सिर मानि |
सो पछिताइ अघाइ उर अवसि होइ हित हानि ||
मुखिया मुखु सो चाहिऐ खान पान कहुँ एक |
पालइ पोषइ सकल अंग तुलसी सहित बिबेक ||
सचिव बैद गुरु तीनि जौं प्रिय बोलहिं भय आस |
राज धर्म तन तीनि कर होइ बेगिहीं नास ||
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अर्थ: गोस्वामीजी कहते हैं कि
मंत्री, वैद्य और गुरु —ये तीन यदि भय या लाभ की आशा से (हित की बात न कहकर
) प्रिय बोलते हैं तो (क्रमशः ) राज्य,शरीर एवं धर्म – इन तीन का शीघ्र ही
नाश हो जाता है |
तुलसी मीठे बचन ते सुख उपजत चहुँ ओर |
बसीकरन इक मंत्र है परिहरू बचन कठोर ||
सरनागत कहुँ जे तजहिं निज अनहित अनुमानि |
ते नर पावँर पापमय तिन्हहि बिलोकति हानि ||
दया धर्म का मूल है पाप मूल अभिमान |
तुलसी दया न छांड़िए ,जब लग घट में प्राण ||
आवत ही हरषै नहीं नैनन नहीं सनेह|
तुलसी तहां न जाइये कंचन बरसे मेह||
तुलसी साथी विपत्ति के, विद्या विनय विवेक|
साहस सुकृति सुसत्यव्रत, राम भरोसे एक||
तुलसी नर का क्या बड़ा, समय बड़ा बलवान|
भीलां लूटी गोपियाँ, वही अर्जुन वही बाण||
तुलसी भरोसे राम के, निर्भय हो के सोए|
अनहोनी होनी नही, होनी हो सो होए||
अर्थ:
तुलसीदास जी कहते हैं, ईश्वर पर भरोसा करिए और बिना किसी भय के चैन की नींद
सोइए| कोई अनहोनी नहीं होने वाली और यदि कुछ अनिष्ट होना ही है तो वो हो
के रहेगा इसलिए व्यर्थ की चिंता छोड़ अपना काम करिए|
तुलसी इस संसार में, भांति भांति के लोग|
सबसे हस मिल बोलिए, नदी नाव संजोग||
अर्थ:
तुलसीदास जी कहते हैं, इस दुनिय में तरह-तरह के लोग रहते हैं, यानी हर तरह
के स्वभाव और व्यवहार वाले लोग रहते हैं, आप हर किसी से अच्छे से मिलिए और
बात करिए| जिस प्रकार नाव नदी से मित्रता कर आसानी से उसे पार कर लेती है
वैसे ही अपने अच्छे व्यवहार से आप भी इस भव सागर को पार कर लेंगे|
लसी पावस के समय, धरी कोकिलन मौन|
अब तो दादुर बोलिहं, हमें पूछिह कौन||
अर्थ: बारिश
के मौसम में मेंढकों के टर्राने की आवाज इतनी अधिक हो जाती है कि कोयल की
मीठी बोली उस कोलाहल में दब जाती है| इसलिए कोयल मौन धारण कर लेती है| यानि
जब मेंढक रुपी धूर्त व कपटपूर्ण लोगों का बोलबाला हो जाता है तब समझदार
व्यक्ति चुप ही रहता है और व्यर्थ ही अपनी उर्जा नष्ट नहीं करता|
काम क्रोध मद लोभ की, जौ लौं मन में खान|
तौ लौं पण्डित मूरखौं, तुलसी एक समान||