२७ योगों का महत्व

ज्योतिष मे जन्म समय के योग व नये कार्य-मूहुर्त के लिए "२७ योगो का महत्व

ज्योतिष के अनुसार 12 राशियां तथा 27 योग होते हैं जिनका हमारे दैनिक जीवन से जुड़े सभी कार्यों के साथ काफी गहरा संबंध है। विषकुम्भ से वैधृति तक के 27 योग हमारे प्रत्येक कार्य को भी प्रभावित करते हैं। इन सभी योगों में शब्द और भोग छिपे होते हैं जो शुभ एवं अशुभ फल देते हैं, तभी तो कई बार कोई कार्य बहुत जल्दी अर्थात एक ही बार में करने से पूरा हो जाता है तथा कई बार कोई कार्य बार-बार मेहनत करके सतर्कता से करने पर भी पूरा नहीं होता व काफी परेशानी पैदा कर देता है। अक्सर देखा गया है कि कोई कार्य बड़े ही अटपटे मन से भी किया जाए तो सफलता मिल जाती है तथा कई बार बड़े ही मन और ध्यान से किए कार्य में भी असफलता हाथ लगती है। ऐसे में प्रत्येक कार्य करने से पूर्व उस समय चल रहे योग पर ध्यान देने की जरूरत है।

विषकुम्भ योग : यह योग विष अर्थात विष से भरा हुआ घड़ा माना जाता है। ★जिस प्रकार विष पान करने पर सारे शरीर/मन में धीरे-धीरे विष भर जाता है वैसे ही इस योग में किया गया कोई भी कार्य विष के समान होता है अर्थात ★इस योग में किए गए कार्य का फल अशुभ ही होगा।

प्रीति योग : यह योग, परस्पर प्रेम का विस्तार करता है। यदि किसी का कोई झगड़ा आदि हुआ हो और उनका "परस्पर समझौता" आदि करवाने की बात हो तो यह प्रीति योग में ही करना चाहिए। ★इस योग में किए गए कार्य से मान सम्मान की प्राप्ति होती है। ★अक्सर मेल-मिलाप बढ़ाने, ★प्रेम विवाह करने तथा अपने ★रूठे मित्रों एवं संबंधियों को मनाने के लिए प्रीति योग में ही प्रयास करना चाहिए। ★इस योग में सफलता अवश्य ही मिलती है।

आॉयुष्मान योग : इस योग में किए गए शुभ कार्य लम्बे समय तक शुभ फल देते हैं। इसलिए कोई भी शुभ कार्य जिसको काफी लम्बी अवधि तक भोगना चाहते हैं तो उसे शुरू  करने से पहले आयुष्मान योग का ध्यान अवश्य कर लेना चाहिए। इस योग में किया गया कार्य जीवन भर सुयोग देने वाला होता है।

सौभाग्य योग : इसे  मंगल दायक योग भी कहते हैं। नाम के अनुरूप यह सदा ही मंगल करने वाला होता है। इस योग में की गई शादी से वैवाहिक जीवन सुखमय रहता है। अक्सर विवाह आदि मुहूर्त में यह योग  देखा जाता है। लोग मुहूर्त तो निकलवा लेते हैं परंतु सही योग के समय में प्रणय सूत्र में नहीं बंध पाते। इसी कारण  किसी अनहोनी के होने पर दूसरों को दोष देने लगते हैं।  सुखमय वैवाहिक जीवन के लिए सौभागय योग में ही विवाह के बंधन में बंधने की प्रक्रिया पूरी की जानी चाहिए।

शोभन : यह योग बड़ा सजीला एवं रमणीय है। शुभ कार्यों और यात्रा पर जाने के लिए यह योग आजमाना चाहिए। इस योग में शुरू की गई यात्रा  मंगलमय एवं सुखद रहती है, मार्ग में किसी प्रकार की असुविधा नहीं होती जिस कामना से यात्रा की जाती है वह भी पूरी हो जाती है खूब आनंद की अनुभूति होती है।

अतिगंड : यह योग बड़ा दुःखद होता है। इसमें किए गए शुभ एवं मंगलमय कार्य भी बड़े दुःखदायक तथा पाप की गठरी सिर पर डाल देनेे जैसे होते हैं। ★इस योग में किए गए कार्यो से धोखे और अवसाद जन्म लेते हैं। अत: ★इस योग में कोई भी शुभ कार्य और न ही कोई नया काम शुरू करें।

सुकर्मा योग : नई नौकरी को ज्वाईन करना अथवा घर में कोई धार्मिक आयोजन सुकर्मा योग में करना अति शुभदायक होता है। इस योग में किए गए कार्यों में किसी प्रकार की बाधा नहीं आएगी। आध्यात्मिक्ता ईश्वर का नाम लेने और सत्कर्म करने के लिए यह योग अति उत्तम एवं श्रेष्ठ है।

घृति योग : यदि किसी भवन एवं स्थान का शिलान्यास अर्थात नींव पत्थर रखने के लिए घृति योग बहुत बढिय़ा होता है । इस योग में रखा गया नींव पत्थर आजीवन सुख-सुविधाएं देता है ...अर्थात यदि रहने के लिए किसी घर का शिलान्यास  यदि इस योग में किया जाए तो इंसान  उस घर में रहकर सब सुख-शांति व सुविधाएं प्राप्त करता हुआ आनंदमय जीवन व्यतीत करता है।

शूल योग : यह योग बड़ा दुःख भरा है। इस योग में किए काम में हर जगह दुःख ही दुख मिलते हैं। ★इस योग में कोई भी काम शुरू करने पर कभी भी सुख की प्राप्ति हो ही नहीं सकती। ★वैसे तो इस योग में कोई काम कभी पूरा होता ही नहीं ★...परंतु यदि अनेक कष्ट सहने पर पूरा हो भी जाए तो "शूल की तरह हृदय में एक चुभन सी पैदा करता रहता है।" ★अत: कभी भी इस योग में कोई भी नया शुभ कार्य शूरु ही नहीं करना चाहिए।

गंड योग : किसी भी काम को ★इस योग में करने से अड़चनें ही पैदा होती हैं तथा कभी कभी तो कोई मामला हल ही नहीं होता l ★जैसे गांठें खोलते-खोलते इंसान थक जाएगा तो भी कोई काम सही नहीं होगा। इसलिए ★कोई भी नया काम शुरू करने से पहले गंड योग का ध्यान अवश्य करना चाहिए।

वृद्धि योग : कोई भी "नया काम" या "नया रोजगार" शुरू करने के लिए यह योग सबसे बढिय़ा है। ★इस योग में किए गए काम में न तो कोई रुकावट आती है ★और ..न ही कोई झगड़ा/Stayed होता है। ★इस योग में जन्मा जातक बीमारी आदि से भी बचा रहता है।

ध्रुव योग : किसी भी ★स्थिर कार्य को इस योग में करने से प्राय: सफलता मिलती है। ★किसी भवन या इमारत आदि का निर्माण इसी योग में शुरू करना पुण्य फलदायक होता है ★...परंतु कोई भी चलायमान.. अस्थिर कार्य जैसे कोई गाड़ी अथवा वाहन लेना इस योग में सही नहीं होता ।

व्याघात योग : इस योग में यदि किसी का भला भी किया जाए तो वह उस नुक्सान ही करेंगा l इस योग में यदि किसी कारणवश कोई गलती भी हो जाए तो भी, व्यक्तिके सगे-भाई बंधु उसका साथ ईलजाम देते हुए इसलिए छोड़ देते हैं कि उन्हे लगता है की वह कार्य को जान-बूझ कर, नुक्शान करवाने के लिये ही ऐसा किया है अर्थात इस योग में किए गए कार्यों में "विघ्न बाधाएं व अप-यश ही आएंगा" l

हर्षण योग: जितने भी कार्य इस योग में किए जाते हैं सभी किसी न किसी तरह खुशी ही प्रदान करते हैं। लेकिन ★सयाने लोग, इस योग में प्रेत कर्म यानि पितरों को मनाने वाले कर्म न करने की सलाह देते हैं।

वज्र योग : किसी भी तरह की खरीदारी अगर "वज्र-योग" में की जाए तो लाभ के बदले हानि ही होती है। ईस योग में ★यदि कोई वाहन आदि खरीद लिया जाए उससे हानि ही होगी अर्थात वाहन से दुर्घटना हो जाती है तथा चोट आदि भी लगती है।  ★सोना खरीदने पर चोरी हो जाता है, ★कपड़ा खरीदा जाए तो वह किसी कारण वश फट़ जाता है या खराब निकलता है।

सिद्धि  योग : प्रभु का नाम लेने या मंत्र सिद्धि के लिए यह योग बहुत बढिय़ा है l इस योग में जो ,भी कार्य शुरू किया जाएगा उसमें निश्चय ही सफलता मिलेगी l

व्यतिपात योग : यह योग जब हो तो कार्य में हानि ही हानि पहुंचाता है। अकारण ही इस योग में किए गए कार्य से हानि ही उठानी पड़ेगी। अन्य किसी का भला करने पर भी आखिर में व्यक्ति को हानि ही होगी l

वरियान योग : मंगलदायक कार्य में वरियान  नामक यह योग सफलता प्रदान करता है  ...मगर पाप कर्म या प्रेत कर्म व. करने से व्यक्ती को, हानि जरुर पहुंचाती है इसलिए कोई भी पितरों का काम इस योग में नहीं करना चाहिए l

परिघ योग : इस योग में शत्रु पर विजय अवश्य मिलती है।

शिव योग : शिव नामक योग बड़ा शुभदायक है। इस योग में किए गए सभी मंत्र, शुभ-फलदायक होते हैं। इस योग में यदि जाप-प्रभु का नाम लिया जाए तो फल़ बाबत सफलता मिलती है l

सिद्ध योग :यदि गुरु से ज्ञान लेकर किसी मंत्र पर ध्यान करना हो तो यह उत्तम योग है l इस योग में जो  कोई कार्य भी सीखना शुरू किया जाए उसमें पूरी तरह सफलता मिलती है गुरु के साथ बैठकर भक्ति करने के लिए यह बढिय़ाँ समय है। इस योग में भोग-विलास से दूर रहे l

साध्य योग :अगर किसी ने विद्या या कोई विधि किसी से भी सीखनी हो तो यह योग अति उत्तम है। इस योग में कार्य सीखने या साध्य करने के काममें खूब मन लगता है, जिसमें व्यक्ति को पूर्ण सफलता सरलता से मिलती है l

शुभ योग : कोई महान कार्य करना या कोई जनहितकारी कार्य करना इस योग में श्रेष्ठ है । इस योग में कर्म-योग शुरु करने से मनुष्य महान बनता है तथा प्रसिद्धि को प्राप्त करता है l

शुक्ल: योग : यह योग मधुर चांदनी रात की तरह होता है अर्थात जैसे चांदनी की  किरणें स्पष्ट बरसती हैं, सुख़-शांती अमृत प्रदान करति है वैसे ही कल्याणकारी हर कार्य में सफलता जरूर से मिलती है l  इस योग में "गुरु कृपा" एवं "प्रभु कृपा" अवश्य बरसती है तथा साधना व शुभ कलयाणकारि, श्रद्धापूर्वक किए गये हर.. "मंत्र भी तुरंत सिद्घ होते हैं l"

ब्रह्म: योग : यदि कोई "शांतिदायक" कार्य करना हो अथवा किसी बात काझगड़ा Court matter का ...Out of Court Settlements, पारिवारिक बँटवारा, Dissolution of Partnership/Dispute or Divorce settlements आदि सुलझाना हो तो, यह योग अति संतुष्टि व लाभदायक है l इस योग में ऐसी कोशिशें करने पर सफलता अवश्य ही मिलेगी l

ऐन्द्र योग : यदि कोई राज्य पक्ष का कार्य रुका हो वह इस योग में करने से पूरा हो सकेगा परंतु ऐसे कार्य प्रात: दोपहर अथवा शाम को सूर्यास्त के पूर्व, सूर्य के होते ही करें l रात को ऐसे योगमें कोई भी, किसिभी प्रकारके कार्य नहीं करने चाहिएं l

वैघृति: योग : यह योग स्थिर कार्यों हेतु ठीक है✅..परंतु यदि कोई भाग-दौड़ वाला कार्य अथवा यात्रा आदि करनी हो तो इस योग में नहीं करनी चाहिए। करने पर व्यक्ति को अनेक मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा l

                      हरिःओउःम्

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