जानिये हमारे ऋषियों ने विश्व को क्या दिया

⭕  ऋषि  ⭕
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  लगता है ऋषि शब्द से अंग्रेजी के रिसर्च शब्द की उत्पत्ति हुई है । भारत के ऋषि रिसर्च किया करते थे, नयी-नयी खोजबीन किया करते थे । वे ऋषि बहुत अच्छे वैज्ञानिक (Scientist) थे और ज्यादातर ऋषि गृहस्थ ऋषि थे । आईये जानिये कि इन ऋषियों ने विश्व को क्या दिया ?
   
अंगिरा ऋषि  :
  ऋग्वेद के प्रसिद्ध ऋषि अंगिरा ब्रह्मा जी के पुत्र हुए । ऋषि अंगिरा के पुत्र बृहस्पति देवताओं के गुरु हुए । ऋग्वेद के अनुसार ऋषि अंगिरा ने ही अग्नि को उत्पन्न किया ।

विश्वामित्र ऋषि  :
गायत्री मन्त्र का ज्ञान देने वाले विश्वामित्र वेद मन्त्रों के सर्वप्रथम द्रष्टा माने जाते हैं । आयुर्वेदाचार्य सुश्रुत इनके ही पुत्र थे । विश्वामित्र की परम्परा पर चलने वाले ऋषियों ने उनके नाम को धारण किया । यह परम्परा अन्य ऋषियों के साथ भी चलती रही हैं ।

  वशिष्ठ ऋषि  :
ऋग्वेद के मन्त्रद्रष्टा और गायत्री मन्त्र के महान साधक वशिष्ठ सप्तऋषियों में से एक हैं । उनकी पत्नी अरुंधती वैदिक कर्मों में उनकी सहभागी रही हैं ।

कश्यप ऋषि  :
मरीच ऋषि के पुत्र कश्यप ऋषि हुए । स्कन्द पुराण के केदार खण्ड के अनुसार इनसे देव, असुर और नागों की उत्पत्ति हुई ।

  जमदग्नि ऋषि  :
  भृगु पुत्र जमदग्नि ने गोवंश की रक्षा पर ऋग्वेद के 16 मन्त्रों की रचना की है । केदार खण्ड के अनुसार जमदग्नि ऋषि आयुर्वेद और चिकित्सा शास्त्र के भी विद्वान हुए ।

अत्री ऋषि  :
  सप्तर्षियों में एक ऋषि अत्री ऋषि ऋग्वेद के पाँचवें मण्डल के अधिकांश सूत्रों के ऋषि हुए । ये चन्द्रवंश के प्रवर्तक हैं । महर्षि अत्री आयुर्वेद के आचार्य भी रहे ।

नर और नारायण ऋषि  :  नर और नारायण को भगवान का अवतार भी माना गया है । ऋग्वेद के मन्त्र द्रष्टा ये ऋषि धर्म और मूर्ति देवी के पुत्र हुए । नर और नारायण दोनों भागवत धर्म एवं सनातन धर्म के मूल प्रवर्तक हुए ।

पराशर ऋषि  :
ऋषि वशिष्ठ के पुत्र पराशर कहलाए । जो पिता के साथ हिमालय में वेद मन्त्रों के द्रष्टा बने । ये महर्षि वेदव्यास के पिता हुए ।

 भरद्वाज ऋषि  :
  देवताओं के गुरु बृहस्पति के पुत्र भरद्वाज ने "यन्त्र सर्वस्व" नामक ग्रन्थ की रचना की । जिसमें विमानों के निर्माण, प्रयोग एवं संचालन के सम्बन्ध में विस्तार पूर्वक वर्णन है । ऋषि भरद्वाज आयुर्वेद के ऋषि हुए । धन्वंतरी जी इनके शिष्य हुए । आकाश में सात तारों का एक मण्डल नजर आता है, उन्हें सप्तर्षियों का मण्डल कहा जाता है । उक्त मण्डल के तारों के नाम भारत के महान सात ऋषियों के आधार पर ही रखे गए हैं । वेदों में उक्त मण्डल की स्थिति, गति, दूरी और विस्तार की विस्तृत चर्चा मिलती है । प्रत्येक मनवन्तर में सात-सात ऋषि हुए हैं । यहाँ "वैवस्तमनु" के काल में जन्मे सात महान ‍ऋषियों का संक्षिप्त परिचय प्रस्तुत है ।

वेदों के रचयिता ऋषि  :
  ऋग्वेद में लगभग एक हजार सूक्त हैं एवं लगभग दस हजार मन्त्र हैं । चारों वेदों में करीब बीस हजार मन्त्र हैं और इन मन्त्रों के रचयिता कवियों को हम ऋषि कहते हैं । बाकी तीन वेदों के मन्त्रों की तरह ऋग्वेद के मन्त्रों की रचना में भी अनेकानेक ऋषियों का योगदान रहा है । पर इनमें भी सात ऋषि ऐसे हैं जिनके कुलों में मन्त्र रचयिता ऋषियों की एक लम्बी परम्परा रही है । ये कुल परम्परा ऋग्वेद के सूक्त दस मण्डलों में संग्रहित हैं और इनमें दो से सात यानी छह मण्डल ऐसे हैं जिन्हें हम परम्परा से वंश मण्डल कहते हैं । क्योंकि इनमें छह ऋषिकुलों के ऋषियों के मन्त्र इकट्ठा कर दिए गए हैं ।

  वेदों का अध्ययन करने पर जिन सात ऋषियों या ऋषि कुल के नामों का पता चलता है - वे नाम क्रमश: इस प्रकार हैं : 1. वशिष्ठ, 2. विश्वामित्र, 3. कण्व, 4. भरद्वाज, 5. अत्री, 6. वामदेव और 7. शौनक ।

  पुराणों में सप्तऋषि के नाम पर भिन्न-भिन्न नामावली मिलती हैं । विष्णु पुराण के अनुसार इस मन्वन्तर के सप्तऋषि इस प्रकार हैं --

        वशिष्ठकाश्यपो
        यात्रिर्जमदग्निस्सगौत ।
        विश्वामित्रभारद्वजौ
        सप्त सप्तर्षयोभवन् ।।

        अर्थात् सातवें मन्वन्तर में सप्तऋषि इस प्रकार हैं - वशिष्ठ, कश्यप, अत्री, जमदग्नि, गौतम, विश्वामित्र और भरद्वाज । इसके अलावा पुराणों की अन्य नामावली इस प्रकार है - ये क्रमशः क्रतु, पुलह, पुलस्त्य, अत्री, अंगिरा, वशिष्ट एवं मरीचि हैं ।

  महाभारत में सप्तर्षियों की दो नामावलियाँ मिलती हैं । एक नामावली में कश्यप, अत्री, भरद्वाज, विश्वामित्र, गौतम, जमदग्नि एवं वशिष्ठ के नाम आते हैं तो दूसरी नामावली में पाँच नाम बदल जाते हैं । कश्यप और वशिष्ठ वहीं रहते हैं, पर बाकी के बदले मरीचि, अंगिरा, पुलस्त्य, पुलह और क्रतु नाम आ जाते हैं । कुछ पुराणों में कश्यप और मरीचि को एक माना गया है तो कहीं कश्यप और कण्व को पर्यायवाची माना गया है । यहाँ प्रस्तुत है - वैदिक नामावली अनुसार सप्तऋषियों का परिचय  --

1.  वशिष्ठ  : 
राजा दशरथ के कुलगुरु ऋषि वशिष्ठ को कौन नहीं जानता ? ये दशरथ के चारों पुत्रों के भी गुरु थे । वशिष्ठ के कहने पर दशरथ ने अपने चारों पुत्रों को ऋषि विश्वामित्र के साथ आश्रम में राक्षसों का वध करने के लिए भेज दिया था । एक समय कामधेनु गाय के लिए वशिष्ठ और विश्वामित्र में युद्ध भी हुआ था । विश्वामित्र ने राजसत्ता पर अंकुश का विचार दिया तो उन्हीं के कुल के मैत्रावरुण वशिष्ठ ने सरस्वती नदी के किनारे सौ सूक्त एक साथ रचकर नया इतिहास बनाया ।

2. विश्वामित्र  :
ऋषि होने से पहले विश्वामित्र राजा थे और ऋषि वशिष्ठ से कामधेनु गाय को हड़पने के लिए उन्होंने युद्ध किया था । लेकिन वे हार गए थे । इस हार ने ही उन्हें घोर तपस्या के लिए प्रेरित किया । विश्वामित्र की तपस्या और मेनका द्वारा उनकी तपस्या भंग करने की कथा जगत प्रसिद्ध है । विश्वामित्र ने अपनी तपस्या के बल पर त्रिशंकु को सशरीर स्वर्ग भेज दिया था । इस तरह ऋषि विश्वामित्र के असंख्य किस्से हैं ।

  माना जाता है कि हरिद्वार में आज जहाँ इस समय वैकुण्ठवासी पंडित श्रीराम शर्मा आचार्य द्वारा स्थापित गायत्री पीठ - शान्तिकुंज है, उसी स्थान पर विश्वामित्र ने घोर तपस्या करके इन्द्र से रुष्ठ होकर एक अलग ही स्वर्ग लोक की रचना कर दी थी । विश्वामित्र ने विश्व को ऋचा बनाने की विद्या दी और गायत्री मन्त्र की रचना की जो मन्त्र विश्व भर के लोगों के हृदय में और जिह्वा पर हजारों, लाखों सालों से आज तक अनवरत निवास कर रहा है ।

3. कण्व  :
माना जाता है इस देश के सबसे महत्वपूर्ण यज्ञ सोमयज्ञ को कण्वों ने व्यवस्थित किया था । कण्व वैदिक काल के ऋषि थे । इन्हीं के आश्रम में हस्तिनापुर के राजा दुष्यंत की पत्नी शकुंतला एवं उनके पुत्र भरत का पालन पोषण हुआ था ।

4. भरद्वाज  : 
वैदिक ऋषियों में भरद्वाज ऋषि का उच्च स्थान है । भरद्वाज के पिता बृहस्पति और माता ममता थी । भरद्वाज ऋषि भगवान श्रीराम से बहुत पहले हुए हैं । एक उल्लेख अनुसार उनकी लम्बी आयु का पता चलता है जब वनवास के समय भगवान श्रीराम इनके आश्रम में गए थे, जो ऐतिहासिक दृष्टि से त्रेता एवं द्वापर युग का सन्धिकाल था ।

  ऋषि भरद्वाज के पुत्रों में 10 ऋषि ऋग्वेद के मन्त्रदृष्टा हुए और इनकी एक पुत्री जिसका नाम 'रात्रि' हुआ, वह भी "रात्रि सूक्त" की मन्त्रदृष्टा मानी गई है । ऋग्वेद के छठे मण्डल के द्रष्टा भरद्वाज ऋषि हैं । इस मण्डल में भरद्वाज के 765 मन्त्र हैं । अथर्ववेद में भी भरद्वाज के 23 मन्त्र मिलते हैं । "भरद्वाज स्मृति" एवं "भरद्वाज संहिता" के रचनाकार भी ऋषि भरद्वाज ही थे । ऋषि भरद्वाज ने "यन्त्र सर्वस्व" नामक बृहद् ग्रन्थ की रचना की थी । इस ग्रन्थ का कुछ भाग स्वामी ब्रह्ममुनि ने "विमान शास्त्र" के नाम से प्रकाशित कराया है । इस ग्रन्थ में उच्च और निम्न स्तर पर विचरने वाले विमानों के लिए विविध धातुओं के निर्माण का वर्णन मिलता है ।

5. अत्री  :
ऋग्वेद के पंचम मण्डल के द्रष्टा महर्षि अत्री ब्रह्मा के पुत्र, सोम के पिता और कर्दम ऋषि व माता देवहूति की पुत्री अनुसूया के पति हुए । अत्री जब एक बार संध्या वन्दन के लिए बाहर गए थे तब त्रिदेव (ब्रह्मा, विष्णु, शिव) अनुसूया के सतीत्व की परीक्षा लेने के लिए ब्राह्मण के भेष में भिक्षा मांगने आए । इन्होंने अनुसूया से कहा कि "यदि आप अपने सम्पूर्ण वस्त्र उतार देंगी तभी हम भिक्षा स्वीकार करेंगे ।" तब अनुसूया ने भी अपने सतीत्व के बल पर इन तीनों देवों को अबोध बालक बना दिया था और उन्हें भिक्षा प्रदान की । माता अनुसूया ने देवी सीता को भी पतिव्रत का उपदेश दिया था ।

  अत्री ऋषि ने विश्व में कृषि के विकास में पृथु और ऋषभदेव की तरह योगदान दिया था । अत्री ऋषि की सन्तान ही सिन्धु पार करके पारस (आज का ईरान) चले गए थे । जहाँ उन्होंने यज्ञ का प्रचार किया । अत्रियों के कारण ही अग्निपूजकों के धर्म पारसी धर्म का सूत्रपात हुआ । अत्री ऋषि का आश्रम चित्रकूट में था । मान्यता है कि अत्री दम्पत्ति की तपस्या और त्रिदेवों की प्रसन्नता के फलस्वरुप विष्णु के आशीर्वाद से महायोगी दत्तात्रेय, ब्रह्मा के आशीर्वाद से चन्द्रमा एवं शिव के आशीर्वाद से महामुनि दुर्वासा महर्षि अत्री एवं अनुसूया देवी के पुत्र रुप में जन्मे । ऋषि अत्री पर अश्विनी कुमारों की भी कृपा रही ।

6.  वामदेव  :
  वामदेव ने विश्व को सामगान (संगीत) दिया । वामदेव ऋग्वेद के चतुर्थ मण्डल के सूत्तद्रष्टा माने जाते हैं ।

7.  शौनक  :
  शौनक ऋषि ने दस हजार विद्यार्थियों के गुरुकुल को चलाकर कुलपति का विलक्षण सम्मान हासिल किया और किसी भी ऋषि ने ऐसा सम्मान पहली बार हासिल किया ।

  फिर से बताएं तो वशिष्ठ, विश्वामित्र, कण्व, भरद्वाज, अत्रि, वामदेव और शौनक - ये हैं वे सात ऋषि, जिन्होंने विश्व को इतना कुछ दे डाला कि कृतज्ञ विश्व ने इन्हें आकाश के तारा मण्डल में बिठाकर एक ऐसा अमरत्व दे दिया कि सप्तर्षि शब्द सुनते ही हमारी कल्पना आकाश के तारा मण्डलों पर टिक जाती है ।

  इसके अलावा मान्यता है कि अगस्त्य, कश्यप, अष्टावक्र, याज्ञवल्क्य, कात्यायन, ऐतरेय, कपिल, जेमिनी, गौतम, भृगु, दुर्वासा आदि सभी ऋषि उक्त सात ऋषियों के कुल के होने के कारण इन्हें भी वही दर्जा प्राप्त है ।

    जय जय सियाराम

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