प्रधान प्रकृति

प्रधानं प्रकृतिश्चैति यदाहुर्लिंगयुत्तमम्।
गन्धवर्णरसैर्हीनं शब्द स्पर्शादिवर्जितम् ॥
( लिंग पुराण 1/2/2)

अर्थात् प्रधान प्रकृति उत्तम लिंग कही गई है जो गन्ध , वर्ण , रस , शब्द और स्पर्श से तटस्थ या वर्जित है। शिवलिंग की आकृति — -भारतीय धर्मग्रंथों के अनुसार यह संपूर्ण ब्रह्मांड मूल रूप में एक अंडाकार ज्योतिपुंज ( बिगबेन्ग का महापिन्ड – नीहारिका के स्वरुप की भांति – – विज्ञान ) के रूप में था। इसी ज्योतिपुंज को आदिशक्ति ( या शिव ) भी कहा जा सकता है , जो बाद में बिखरकर अनेक ग्रहों और उपग्रहों में बदल गई।( विज्ञान के अनुसार – – समस्त सौरमंडल महा-नेब्यूला के बिगबैंग द्वारा बिखरने से बना है | ) वैदिक विज्ञान — ‘ एकोहम् बहुस्यामि ‘ का भी यही साकार रूप और प्रमाण है। इस स्थिति में मूल अंडाकार ज्योतिपुंज ( दीपक की लौ या अग्निशिखा भी अंडाकार रूप होती है अतः ज्योतिर्लिंग कहा गया ) का प्रतीक सहज रूप में वही आकृति बनती है , जिसकी हम लिंग रूप में पूजा करते हैं। संपूर्ण ब्रह्मांड की आकृति निश्चित ही शिवलिंग की आकृति से मिलती – जुलती है इस तरह शिवलिंग का पूजन , वस्तुत : आदिशक्ति का और वर्तमान ब्रह्मांड का पूजन है । शिव के ‘ अर्द्धनारीश्वर ‘ स्वरूप से जिस मैथुनी – सृष्टि का जन्म हुआ, जो तत्व-विज्ञान के अर्थ में विश्व संतुलन व्यवस्था में ( जो हमें सर्वत्र दिखाई देती है ) -शिव तत्व के भी संतुलन हेतु योनि-तत्व की कल्पना की गयी जो बाद में भौतिक जगत में लिंग-योनि पूजा का आधार बनी | उसे ही जनसाधारण को समझाने के लिए लिंग और योनि के इस प्रतीक चिह्न को सृष्टि के प्रारम्भ में प्रचारित किया गया |
आध्यात्मिक-वैदिक आधार में –
— ब्र ह्म अलिंगी है|
—-उससे व्यक्त ईश्वर व माया भी अलिंगी हैं |
—जो ब्रह्मा , विष्णु, महेश व …रमा, उमा, सावित्री ..के आविर्भाव के पश्चात —-विष्णु व रमा के संयोग से ….व विखंडन से असंख्य चिद्बीज अर्थात “एकोहं बहुस्याम” के अनुसार विश्वकण बने जो समस्त सृष्टि के मूल कण थे | यह सब संकल्प सृष्टि ( या अलिंगी-अमैथुनी— ASEXUAL— विज्ञान ) सृष्टि थी | लिंग का कोइ अर्थ नहीं था |
— प्रथमबार लिंग-भिन्नता …रूद्र-महेश्वर के अर्ध नारीश्वर रूप की आविर्भाव से हुई,
—-जो स्त्री व पुरुष के भागों में भाव-रूप से विभाजित होकर प्रत्येक जड़, जंगम व जीव के चिद्बीज या विश्वकण में प्रविष्ट हुए |
—-मानव-सृष्टि में ब्रह्मा ने स्वयं को पुरुष व स्त्री रूप —-मनु-शतरूपा में विभाजित किया और लिंग –अर्थात पहचान की व्यवस्था स्थापित हुई | क्योंकि शम्भु -महेश्वर लिंगीय प्रथा के जनक हैं अतः –इसे माहेश्वरी प्रजा व लिंग के चिन्ह को शिव का प्रतीक लिंग माना गया |
२- जैविक-विज्ञान ( बायोलोजिकल ) आधार पर – —सर्वप्रथम व्यक्त जीवन एक कोशीय बेक्टीरिया के रूप में आया जो अलिंगी ( एसेक्सुअल .. ) था ..समस्त जीवन का मूल आधार – —> जो एक कोशीय प्राणी प्रोटोजोआ ( व बनस्पति—प्रोटो-फाइट्स–यूरोगायरा आदि ) बना| ये सब विखंडन (फिजन)
द्विलिंगी पुष्प
—–बहुकोशीय जीव …हाईड्रा आदि हुए जो विखंडन –संयोग ,बडिंग, स्पोरुलेशन से प्रजनन करते थे |—. वाल्वाक्स आदि पहले कन्जूगेशन( युग्मन ) फिर विखंडन से असंख्य प्राणी उत्पन्न करते थे | इस समय सेक्स –भिन्नता अर्थात लिंग –पहचान नहीं थी |
—–पुनः द्विलिंगीय जीव( अर्धनारीश्वर –भाव ) …केंचुआ, जोंक..या द्विलिंगी पुष्प वाले पौधे .. अदि के साथ लिंग-पहचान प्रारम्भ हुई | एक ही जीव में दोनों स्त्री-पुरुष लिंग होते थे |
——> तत्पश्चात एकलिंगी जीव …उन्नत प्राणी ..व वनस्पति आये जो ..स्त्री-पुरुष अलग अलग होते हैं … मानव तक जिसमें अति उन्नत भाव—प्रेम स्नेह, संवेदना आदि उत्पन्न हुए| तथा विशिष्ट लिंग पहचान आरम्भ हुई—यथा….
..स्त्री में पुरुष में
१-बाह्य पहचान—- — योनि, भग — लिंग (शिश्न)
२-आतंरिक लिंग… –अंडाशय, यूटरस –वृषण (टेस्टिज)
३-बाह्य-उपांग …. –स्तन –दाड़ी, मूंछ
४-आकारिकी(मोर्फोलोजी) … –नरम व चिकनी त्वचा –पंख, रंग , कलँगी ,सींग
५-भाव-लिंग … –धैर्य, माधुर्य, सौम्यता, –कठोरता, प्रभुत्व ज़माना,
नम्रता, मातृत्व की इच्छा आक्रमण- क्षमता
–वनस्पति में –लिंग-पहचान—- पुष्पों का सुगंध, रंग, भडकीलापन…एकलिंगी-द्विलिंगी पुष्प ..पुरुषांग –स्टेमेन ..स्त्री अंग …जायांग …पराग-कण आदि|
३ – तत्व-भौतिकी आधार पर लिंग … मूल कणों को विविध लिंग रूप में —–ऋणात्मक (नारी रूप) इलेक्ट्रोन …धनात्मक ( पुरुष रूप ) पोजीत्रोन.. के आपस में क्रिया करने पर ही सृष्टि …न्यूट्रोन..का निर्माण होता है| शक्ति रूप ऋणात्मक –इलेक्ट्रोन….मूल कण –प्रोटोन के चारों और चक्कर लगाता रहता है| रासायनिकी में …लिंगानुसार …ऋणात्मक आयन व धनात्मक

Popular posts from this blog

पूजहि विप्र सकल गुण हीना, शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा

भरद्वाज-भारद्वाज वंश/गोत्र परिचय __मनुज देव भारद्वाज धर्माचार्य मुम्बई

११५ ऋषियों के नाम,जो कि हमारा गोत्र भी है