अलख निरंजन का अर्थ
*अलख निरंजन ।*
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मेरे देखे इन दो शब्दों को अच्छे से समझ ले अगर कोई इंसान तो वो समझ सकता है कि परमात्मा जिसे अलख निरंजन के नाम से जाना जाता है वह क्या है l
अलख शब्द लक्ष शब्द से बना है ।अलख का मतलब होता है जिसे आंख नहीं देख सकती है। वह चीज जिसे देखा नहीं जा सकता है आप आंखों से संसार को देख सकते हो, आंखों से चीजों को देख सकते हो,तो जिनको देख सकते हो वह परमात्मा नहीं है ।
आप तीसरे नेत्र से स्वपन की दुनिया देख सकते हो; भविष्य को देख सकते हो और कुछ तो ऐसा भी बोलते हैं कि समय और स्थान के परे भी आप तीसरे नेत्र से देख सकते हो लेकिन जो देखा जा सकता है चाहे वह फिजिकल दो आंख हो या साइकिक तीसरी आंख से, जो भी देखा जा सकता है वह परमात्मा नहीं है ।
अलख-मतलब जिसे देखा नहीं जा सकता!
निरंजन का मतलब होता है जो किसी से किसी प्रकार का कोई संबंध नहीं रखता है;जो अलिप्त है जो निर्दोष है जो पवित्र है...
वह पवित्र इसलिए है क्योंकि उसके अपवित्र होने का कोई संभावना ही नहीं है।
तो कोई भी चीज कोई भी भाव अगर किसी से संबंधित है... प्रेम किसी और से संबंधित होता है क्रोध किसी और से संबंधित होता है यहां तक कि मेरा होना भी तेरे से संबंधित होता है तेरा होना नहीं हुआ तो मेरा होना भी नहीं होता है तो इस जगत में किसी का किसी से संबंध हमेशा होता ही है ऑक्सीजन का कार्बन डाइऑक्साइड से संबंध होता है पेड़ों का मिट्टी से संबंध होता है हर किसी का किसी से कोई ना कोई संबंध है ही लेकिन इनके अलावा कोई ऐसा भी है जिसका किसी से कोई संबंध नहीं है।
कोई भी चीज जो किसी न किसी से संबंधित है तो यह भी वह नहीं है।
पहली बात जो देखा नहीं जा सकता और दूसरी बात जिसका किसी से कोई संबंध नहीं है जो अलिप्त है। लिप्तता नहीं है उसके गुण में। अगर ऐसी कोई चीज हमको अपने भीतर मिल जाती है जो अलख है और जो निरंजन हैं तो वही मंजिल है।