पश्चाताप और दंड
व्यक्ति को जब उसके अपराध का दंड मिलता है तब कभी-कभी उस न्याय को देख कर मन कचोटता है
प्रश्न उठता है ह्रदय में कि जब वह अपराध हुआ था तब व्यक्ति भिन्न था उसके पश्चात उसने इतने पश्चाताप किए स्वयं में इतना परिवर्तन किया फिर उसे दंड क्यों मिले
पर जहां आघात होता है वहां प्रतिघात भी होता है जैसा कर्म वैसा फल यदि किसी को प्रेम दोगे तो सुख प्राप्त होगा यदि किसी की हत्या करोगे तो मृत्यु दंड मिलेगा
जैसा कार्य वैसा ही न्याय
तो फिर प्रायश्चित और पश्चाताप का कोई मूल्य नहीं ?
अवश्य है, मूल्य,
प्रायश्चित और पश्चाताप मनुष्य की आत्मा को बलवान करता है आने वाले दंड को स्वीकार करने के लिए मनुष्य को तैयार करता है
अर्थात बिना प्रायश्चित के दंड स्वीकार करने का कोई मूल्य है?
स्वयं विचार कीजिए
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धर्माचार्य - मनुज देव भारद्वाज, मुम्बई (09814102666)
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