सत्वगुनी संपत्ति

बिना कारण तथा स्वार्थ के हेतु हिंसा करना अधर्म है
वास्तव में अहिंसा ही परम धर्म है और उसके साथ सत्य, क्रोध ना करना, त्याग, मन की शांति, निंदा ना करना, दयाभाव, सुख के प्रति आकर्षित ना होना, बिना कारण कोई कार्य न करना, तेज, क्षमा, धैर्य, शरीर की शुद्धि, धर्म का द्रोह ना करना तथा अहंकार ना करना इतने गुणों को सत्वगुनी संपत्ति या दैवी संपत्ति कहा जाता है
इसी से मनुष्य परमात्मा की भक्ति कर पाता है
जीवन के कर्तव्य का आवाहन करता है धर्म की स्थापना करता है
और कर्म के फल की आशा का त्याग करके जीता है उसे मैं निसंदेह इस जन्म में संतोष देता हूं और मृत्यु के पश्चात अपने ही अंतर में स्थान देता हूं

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धर्माचार्य - मनुज देव भारद्वाज, मुम्बई (09814102666)
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