संबंधों की महत्वता

प्राय व्यक्ति अपनी अनभिज्ञता अपने भय उपेक्षा और अहंकार में अपने संबंधों की महत्वता को समझ नहीं पाता वह अपनी भूल को कभी स्वीकार नहीं करता उसे दोष सदैव दूसरों में ही दिखता है और वह वह स्वयं अपने आप को पीड़ित घोषित कर बैठता है और यही कारण बन जाता है आपसी द्वेष का किंतु स्मरण रहे केवल परिवार में ही अपितु संसारिक संबंधों में व्यक्ति को दो बातों का सदैव स्मरण रखना चाहिए पहली कृतज्ञता अपने संबंधों के प्रति और दूसरी क्षमा यदि जीवन में कभी भी मर्यादा का उल्लंघन हो जाए तो और इन दोनों को व्यक्त करने में कभी भी विलंब या संकोच नहीं करना चाहिए



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धर्माचार्य - मनुज देव भारद्वाज, मुम्बई (09814102666)
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