आत्मा तो अजर है, अमर है

जो मरता है वह पंचभूतों से निर्मित शरीर है, किंतु आत्मा, आत्मा तो अजर है, अमर है 
जिसकी यात्रा मोक्ष पर संपूर्ण होती है
जहां सांसारिक बंधनों से व्यक्ति मुक्त हो जाता है सारी इच्छाएं लुप्त हो जाती हैं 
किंतु तुम तो कभी सत्य की खोज ही नहीं करते, तुम तो सदैव उन तत्वों को ढूंढते रहते हो जो तुम्हारे अहंकार के पोषण हेतु आवश्यक होते है
किंतु सत्य तो यही है कि ना तो कुछ तुम्हारा है ना तुम किसी के, जो है परमात्मा का है और जो नहीं है वह भी परमात्मा का ही है
इस शरीर में तुम इस सत्य से अनभिज्ञ हो किंतु इस शरीर से पूर्व तुम्हें इस सत्य का बोध था और इस शरीर के पश्चात भी रहेगा
प्रश्न यह है कि क्या तुम इस सत्य को स्वीकार करना चाहते हो, यदि करते हो तो परिवर्तन का मार्ग स्वतः निश्चित हो जाएगा
तुम्हारा जीवन पुनः आरंभ तो नहीं हो सकता यदि तुम चाहो तो अपने जीवन का नया मार्ग आरंभ कर सकते हो




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धर्माचार्य - मनुज देव भारद्वाज, मुम्बई (09814102666)
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