भगवान अपने चमत्कार से मनुष्य में परिवर्तन क्यों नहीं करते

चमत्कार से मनुष्य की आत्मा में परिवर्तन नहीं होता
आत्मा परमात्मा का ही अंश है और उसकी स्वतंत्रता की कोई मर्यादा नहीं
धर्म के मार्ग पर चलना है या अधर्म के मार्ग पर
यह आत्मा निश्चित करती है और उसके उस निश्चय को कोई चमत्कार बदल नहीं सकता
विचित्रता यही है कि मनुष्य स्वतंत्र है किंतु वो बुद्धि पूर्वक विचार नहीं करता
ना धर्म का विचार करता है और ना ही अधर्म का विचार करता है वास्तव में वह केवल अपने से अधिक शक्तिमान का, सत्ता स्थान पर बैठे व्यक्ति का अनुकरण करता है, अंध अनुकरण करता है
पिता का अनुकरण पुत्र करता है, गुरु का अनुकरण शिष्य करता है और राजा का अनुकरण उसकी प्रजा करती है
यही कारण है जब राजाओं का अधर्म बढ़ता है तो उनकी प्रजा में भी अधर्म तीव्र गति से बढ़ता है
यह ऐसा ही समय है जब सुख संपत्ति सुविधाओं की भयानक लालसा है राजाओं के मन में
तपस्या और त्याग के स्थान पर भोग और वासनाओं का महत्व अधिक है और जब प्रजा अपने ही राजा को अधर्म करता हुआ देखती है तो स्वयं भी अधर्म के मार्ग पर निकल पड़ती है ।

जिस वृक्ष पर कड़वे फल हो उस वृक्ष को उखाड़कर मधुर फल देने वाला वृक्ष लगाना पड़ता है
उसी वृक्ष को अधिक खान-पान देने पर या उसकी टहनियों को काट छांट करने से फल मधुर नहीं हो जाता
मनुष्य का संबंध जो भूतकाल से था उन्हें पूर्णता काटकर नए भविष्य का निर्माण करना अनिवार्य है
भविष्य को शुद्ध करने हेतु इस अशुद्ध वर्तमान को बदलना अनिवार्य है

ईश्वर ने तुम्हें मनुष्य जन्म इसीलिए दिया है ताकि तुम संसार की नई व्यवस्था कर सको
इसलिए अपने दुखों का विस्मरण करो और समग्र समाज के कल्याण का विचार करो, समग्र समाज के उद्धार का विचार करो,
भविष्य के सूर्य की पहली किरण को उगते हुए देखो


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धर्माचार्य - मनुज देव भारद्वाज, मुम्बई (09814102666)
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