माता पिता का निस्वार्थ प्रेम
संतान के लिए अपने माता पिता का निस्वार्थ प्रेम
समझना सरल नहीं होता, वो प्राय ये सोचता है कि यदि उसकी इच्छा की पूर्ति
नहीं हुई तो इसका ये अर्थ है कि उसके माता पिता उससे प्रेम नहीं करते, उसकी
इच्छाएं महत्वपूर्ण नहीं है, वो अपने माता पिता के लिए महत्वपूर्ण नहीं है
और ये शंका सम्पूर्ण रूप से तभी दूर होती है जब सन्तान स्वयं
माता या पिता बनता है तब उसे समझ आता है कि माता पिता बनना कितना बड़ा
दायित्व है, तब उसे ज्ञात होता है कि इस दायित्व का दूसरा नाम त्याग है, और
उसके माता पिता के निर्णय, उनके मार्गदर्शन का क्या महत्व है
माता पिता कभी ये नहीं चाहते कि उनकी संतान उनके प्रति कृतज्ञ
रहे, किंतु कृतज्ञ न होने का अर्थ कृतघ्नता तो नहीं होना चाहिए, अविश्वास
भी एक प्रकार से कृतघ्नता ही है
संतान के प्रत्येक कृत्य से उसके माता पिता प्रभावित होते हैं और जब उसे इसका बोध होता है तो उसे आत्म ग्लानि अवश्य होती है
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धर्माचार्य - मनुज देव भारद्वाज, मुम्बई (09814102666)
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