भगवान की भक्ति

भगवान की भक्ति का मार्ग पूर्व निर्धारित कहां है
भगवान के लिए जो आवश्यक है वह है भक्तों का भाव भक्तों की मंशा
यदि भक्तों में भाव है तो प्रभु है यदि भाव नहीं तो कुछ भी नहीं
यह भक्ति की पराकाष्ठा ही तो है कि भक्त और भगवान में कोई अंतर नहीं रह जाता
भक्त कर्मकांड से परे है वह भगवान से इतना प्रेम करता है कि भगवान पर अपना अधिकार मानता है
ऐसे भक्त है जो भगवान को भी आदेश दे सकते हैं और भगवान भी ऐसे भक्तों का आदेश मान लेते हैं
क्योंकि उसकी भक्ति इतनी पवित्र और निर्मल है और उनकी भक्ति की शक्ति और विशेषता आने वाले समय में सृष्टि में परिवर्तन का कारण बनती है



------------------------------------------------------------------------
धर्माचार्य - मनुज देव भारद्वाज, मुम्बई (09814102666)
------------------------------------------------------------------------

Popular posts from this blog

पूजहि विप्र सकल गुण हीना, शुद्र न पूजहु वेद प्रवीणा

भरद्वाज-भारद्वाज वंश/गोत्र परिचय __मनुज देव भारद्वाज धर्माचार्य मुम्बई

११५ ऋषियों के नाम,जो कि हमारा गोत्र भी है