जिसने मुझे जिस रूप में चाहा मैं उसे उसी रुप में मिला हूं

जिसने मुझे जिस रूप में चाहा मैं उसे उसी रुप में मिला हूं
जो मैं तुम्हारा शिव हूं वह केवल तुम्हारा शिव हूं
जो मैं नारायण की दृष्टि में हूं वह केवल उनका शिव हूं
मैं प्रत्येक के लिए उसके मन अनुकूल हूं
किंतु तुम अपनी दृष्टि उद्देश्य के लिए दूसरों की दृष्टि के शिव स्वरूप को ध्वस्त क्यों कर रहे हो
इस प्रकार की कठोर और कठिन भक्ति मेरे भक्तों को शोभा नहीं देती
मैं वही हूं जो सबका हूं और सब में एक ही हूं
तुम्हारी उद्विग्नता तो निमित्त मात्र है 
तुम्हारे द्वारा समस्त संसार को सृष्टि चक्र जीवन चक्र समझने का अवसर प्राप्त होगा
इस जगत में कुछ भी स्थाई नहीं है सब कुछ परिवर्तित होता रहा है और होता रहेगा
सब कुछ मुझ में है मेरे अतिरिक्त कुछ भी नहीं है
जब इसका आरंभ हुआ था तब कुछ ना था
तब सब कुछ शून्य से लिप्त था
किंतु मैं तब भी था और जब कुछ भी नहीं रहेगा तब भी मैं रहूंगा


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धर्माचार्य - मनुज देव भारद्वाज, मुम्बई (09814102666)
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