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Showing posts from August, 2018

कर्म की शिक्षा

कर्म एक सीख एक भिखारी रोज एक दरवाजें पर जाता और भिख के लिए आवाज लगाता, और जब घर मालिक बाहर आता तो उसे गंदी_गंदी गालिया और ताने देता, मर जाओ, काम क्यूं नही करतें, जीवन भर भीख मांगत...

नाग पंचमी का महत्व

नागपंचमी पर नागों की पूजा कर आध्यात्मिक शक्ति और धन मिलता है. लेकिन पूजा के दौरान कुछ बातों का ख्याल रखना बेहद जरूरी है. हिंदू परंपरा में नागों की पूजा क्यों की जाती है और ज्...

सफलता क्या है ?

सफलता क्या है ? 4 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने कपड़ों को गीला नहीं करते। 8 वर्ष की उम्र में सफलता यह है कि आप अपने घर वापिस आने का रास्ता जानते है। 12 वर्ष की उम्र में सफलता ...

शिवमहिम्न स्तोत्र - श्री गंधर्वराज पुष्पदंत

शिवमहिम्न स्तोत्र में 43 श्लाेक हैं, श्लाेक तथा उनके भावार्थ निम्नांकित हैं :- पुष्पदन्त उवाच - महिम्नः पारं ते परमविदुषो यद्यसदृशी। स्तुतिर्ब्रह्मादीनामपि तदवसन्नास्त्वयि गिरः।। अथाऽवाच्यः सर्वः स्वमतिपरिणामावधि गृणन्। ममाप्येष स्तोत्रे हर निरपवादः परिकरः।। १।।  भावार्थ: पुष्पदंत कहते हैं कि हे प्रभु ! बड़े बड़े विद्वान और योगीजन आपके महिमा को नहीं जान पाये तो मैं तो एक साधारण बालक हूँ, मेरी क्या गिनती? लेकिन क्या आपके महिमा को पूर्णतया जाने बिना आपकी स्तुति नहीं हो सकती? मैं ये नहीं मानता क्योंकि अगर ये सच है तो फिर ब्रह्मा की स्तुति भी व्यर्थ कहलाएगी। मैं तो ये मानता हूँ कि सबको अपनी मति अनुसार स्तुति करने का अधिकार है। इसलिए हे भोलेनाथ! आप कृपया मेरे हृदय के भाव को देखें और मेरी स्तुति का स्वीकार करें। अतीतः पंथानं तव च महिमा वांमनसयोः। अतद्व्यावृत्त्या यं चकितमभिधत्ते श्रुतिरपि।। स कस्य स्तोतव्यः कतिविधगुणः कस्य विषयः। पदे त्वर्वाचीने पतति न मनः कस्य न वचः।। २।। भावार्थ: आपकी व्याख्या न तो मन, न ही वचन द्वारा संभव है। आपके सन्दर्भ में वेद भी अचं...

माता-पिता का दायित्व

एक संतान के लिए उसके माता-पिता से अधिक महत्वपूर्ण कुछ भी नहीं होता संतान को ईश्वर में भी तभी विश्वास होता है जब माता-पिता ने कहा यही ईश्वर है और माता-पिता का दायित्व यह है कि उ...

संकट की घड़ी

किसी भी संकट की घड़ी में अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण होता है दायित्व संकट की घड़ी में सबसे बड़ा दायित्व होता है एक दूसरे की सहायता करना जब तक हम प्रयत्न नहीं करते तब तक हमें अ...

ज्ञान एवं पूजन विधि

त्रिदेव - ब्रह्मा-सर्जक, विष्णु-पालक, शिव-संहारक। तीन गुण - सत्व, रज, तम। तीन काल - भूतकाल, वर्तमानकाल, भविष्यकाल। तीन लोक - स्वर्ग्लोग, मृत्युलोक, पाताललोक। ताप त्रय - दाहिक, दैवि...