संकट की घड़ी
किसी भी संकट की घड़ी में अधिकार से अधिक महत्वपूर्ण होता है दायित्व
संकट की घड़ी में सबसे बड़ा दायित्व होता है एक दूसरे की सहायता करना
जब तक हम प्रयत्न नहीं करते तब तक हमें असफलता का ही सामना करना पड़ता है
आवश्यकता है तो उन समस्याओं का प्रेम भाव और निस्वार्थ भाव से सामना करने का
यदि ऐसा हम करें तो जीवन में कोई भी संकट बड़ा नहीं सब छोटे प्रतीत होते हैं
किंतु जीवन में केवल दूसरे से सहायता की अपेक्षा ना करके हमें स्वयं सहायता की पहल करनी होती तभी यह परस परिता ज्यादा अहम होगी
परिवर्तन लाने के लिए पहले स्वयं को परिवर्तित करना होगा
विकल्प हमारे समक्ष है चयन भी हमें ही करना है
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धर्माचार्य - मनुज देव भारद्वाज, मुम्बई (09814102666)
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