कलयुग का भविष्य कथन

राजन ! अट्ठाइसवें कलियुग में जो कुछ होने वाला है, उसे सुनो ! कलियुग के तीन हजार दो सौ नब्बे वर्ष व्यतीत होने पर इस भूमंडल में वीरों का अधिपति शूद्रक नामका राजा होगा, जो चर्चिता नगरी में आराधना करके सिद्धि प्राप्त करेगा | शूद्रक पृथ्वी का भार उतारने वाला राजा होगा | तदनन्तर कलियुग के तीन हजार तीन सौ दसवें वर्ष में नन्द वंश का राज्य होगा | चाणक्य नाम वाला ब्राह्मण उन नन्दवंशियों का संहार करेगा और शुक्ल तीर्थ में वह अपने समस्त पापों से छुटकारा पाने के लिए प्रायश्चित की अभिलाषा करेगा | इसके सिवा कलियुग के तीन हजार बीस बर्ष निकल जाने पर इस पृथ्वी पर राजा विक्रमादित्य होंगे | वे नवदुर्गाओं की सिद्धि एवं कृपा से राज्य पाएंगे और दीनों का उद्धार करेंगे | तदनन्तर तीन हजार से सौ वर्ष और अधिक बीतने पर शक नामक राजा होगा | उसके बाद कलियुग के तीन हजार छह सौ वर्ष बीतने पर मगध देश में हेमसदन से अञ्जनि के गर्भ से भगवान् विष्णु के अंशावतार स्वयं भगवान् बुद्ध प्रकट होंगे, जो धर्मं का पालन करेंगे | महात्मा बुद्ध के अनेक उत्तम चरित्र स्मरणीय होंगे | अपने भक्तों के लिए अपनी यशोगाथा छोड़कर वे स्वर्ग लोक को चले जायेंगे, भक्तजन उन्हें पापहारी बुद्ध कहेंगे | तत्पश्चात कलियुग के चार हजार चार सौ वर्ष बीत जाने पर चन्द्र वंश में महाराजा प्रमिति का प्रादुर्भाव होगा | वे बहुत बड़ी सेना के अधिपति तथा अत्यंत बलवान होंगे | करोडो म्लेछों का वध करके सब ओर से पाखण्ड का निवारण करते हुए केवल विशुद्ध वैदिक धर्म की स्थापना करेंगे | महाराजा प्रमिति का देहावसान गंगा यमुना के मध्यवर्ती क्षेत्र प्रयाग में होगा |

तत्पश्चात किसी समय काल के प्रभाव से जब प्रजा अत्यंत पीड़ित होने लगेगी, तब भयंकर अधर्म का आश्रय लेकर शठता पूर्वक बर्ताव करेगी | सभी अकर्मण्य तथा आवश्यक साधनों से भी रहित होंगे | उस समय शाल्य नामक म्लेछ धर्म का विनाश करने के लिए उन सबका संहार करेगा | उत्तम, मध्यम और अधम सब प्रकार की श्रेणियों का विनाश करके वह अत्यंत भयंकर कर्म करने वाला होगा | तब उसका वध करने के लिए सम्पूर्ण जगत के स्वामी साक्षात् भगवान् विष्णु  सम्भल ग्राम में श्रीविष्णुयशा के पुत्र हो कर अवतीर्ण होंगे और श्रेष्ठ ब्राह्मणों के साथ जाकर उस ‘शाल्य’ नाम वाले म्लेछ का संहार करेंगे | वे सब ओर घूम घूम कर करोड़ों और अरबों पापियों का वध करके उस धर्म का पालन करेंगे, जो वेद मूलक है | साधु पुरुषों के लिए धर्मरूपी नौका का निर्माण करके अनेक प्रकार की लीलाएं करने के पश्चात वे भगवान् कल्कि परम धाम में पधारेंगे | राजन ! उसके बाद फिर सतयुग का आरम्भ होगा |  प्रथम सतयुग, अंतिम सतयुग और अट्ठाइसवें कलियुग ये अन्य युगों से कुछ विशिष्टता रखते हैं | शेष युगों की प्रवृत्ति औरों के सामान होती है | कलियुग बीतने पर सतयुग के प्रारंभ में राजा मरू (पुरु) से सूर्यवंश, देवापि से चन्द्रवंश और  श्रुतदेव से ब्राह्मण वंश की परम्परा चालू होगी | राजन ! इस प्रकार चरों युगों के व्यवस्था बदलती रहती हैं |
चारों युगों में वही लोग धन्य हैं, जो भगवान् शंकर और विष्णु  का भजन करते हैं |

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