पिशाच कौन होते है? इनके लक्षण व् उदेश्य

जब मन की विद्या यदा कदा अनियंत्रित होकर दूसरो के शोषण और दूसरों के दमन में लग जाए, तो व्यक्ति पिशाच हो जाता है
पिशाच का स्वयं पर भी नियंत्रण नही रहता
वो जो कुछ भी करता है उसे यही प्रतीत होता है कि वो अपने उत्थान के लिए कर रहा है
किंतु मूल का वो पैशाचिक वृत्ति से ग्रस्त होता है

अपने जैसे पिशाचो का निर्माण कर अपनी संख्या में वृद्धि करना ही उनकी उपलब्धि होती है
पिशाच वृत्ति को व्याधि की भांति समाज मे फैलाने से उन्हे सुख मिलता है
वो यही चाहते है के अधिक से अधिक व्यक्ति उनकी सोच और उनकी प्रवृति से ग्रसित हो जाए
दूसरो की यातना और दूसरो के शोषन मे ही उनका सुख है
उन्हे दुख होता है, जब उन्हे अपना ये लक्ष्य प्राप्त नहीं होता, जब वे अपनी शक्तियों से किसी को प्रभावित नहीं कर पाते

परम योगी, सत्यवादी, निलोभी, आत्मसंयम, इन सब पर पैशाचिक वृत्तियों का कोई प्रभाव नहीं पड़ता
जो शुभता के स्त्रोत है, प्रचारक है, उन पर भी इनका कोई प्रभाव नहीं पड़ता
इनकी परिणीती ये है कि ये अपनी पैशाचिक वृत्तियों से मुक्त हो, या इनका समूल नाश हो
क्यूंकि ऐसी वृत्ति से ग्रसित व्यक्ति किसी भी स्तिथि मे समाज के लिए कल्याणकारी और हितकारी नहीं हो सकती

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