84 लाख योनियां
हिन्दू धर्मानुसार सृष्टि में जीवन का
विकास क्रमिक रूप से हुआ है।
श्रीमद्भागवत पुराण के अनुसार..
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सृष्ट्वा पुराणि विविधान्यजयात्मशक्तया
वृक्षान् सरीसृपपशून् खगदंशमत्स्यान्।
तैस्तैर अतुष्टहृदय: पुरुषं विधाय
ब्रह्मावलोकधिषणं मुदमाप देव:॥
(11 -9 -28 श्रीमद्भागवतपुराण)
अर्थात:- विश्व की मूलभूत शक्ति सृष्टि के रूप में अभिव्यक्त हुई और इस क्रम में वृक्ष, सरीर सर्प, पशु-पक्षी, कीड़े-मकोड़े, मत्स्य आदि अनेक रूपों में सृजन हुआ, परंतु उससे उस चेतना की पूर्ण अभिव्यक्ति नहीं हुई अत: मनुष्य का निर्माण हुआ, जो उस मूल तत्व ब्रह्म का साक्षात्कार कर सकता था।
श्रीमद्भगवतगीता-अध्याय 8 का 5 वां श्लोक है -
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"अन्तकाले च मामेव स्मरन्मुक्त्वा कलेवरम।
यः प्रयाति स मधावम याति नास्त्यत्र संशयः।
जो पुरुष अंतकाल में मुझ को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग कर जाता है , वह मेरे साक्षात् स्वरुप को प्राप्त होता है - इसमें कुछ भी संशय नहीं है।
क्या इसका अर्थ यह लगाया जाय कि हम जीवन भर चाहे कितने ही पाप कर्म करते रहें और अंत में मृत्यु के समय ईश्वर को याद कर लेने से पाप मुक्त हो जायेंगे ?
श्रीमद्भगवतगीता के'अध्याय 8 का 6 वां श्लोक है -
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“ यं यं वापि स्मरन्भावं त्यजत्यन्ते कलेवरम।
तम तमेवैति कौन्तेय सदा तद्वाभविताः
यह मनुष्य अन्तकाल में जिस - किस भाव को स्मरण करता हुआ शरीर त्याग करता है , उस - उसको ही प्राप्त होता है क्योंकि वह सदा उसी भाव से भावित रहता है। क्या इसका यह अर्थ है कि हम जीवन भर कितने ही पाप कर्म करें और अंत में मृत्यु के समय यह कामना करें कि हमें मनुष्य का ही अगला जन्म हो तो हम तथा कथित निम्न योनियों में जन्म से बच जायेंगे ? या फिर जैसा कि कहा जाता है कि हम यह सोचें कि जीवन भर के पाप कर्म मात्र गंगा एक डुबकी लगाने भर से धूल जायेंगे और हम निम्न योनियों पशु - पक्षी , कीड़े - मकोड़ों के रूप में जन्म लेने से बच जायेंगे-
84 लाख योनियां सम्भवतःपौराणिक ग्रंथों कि उपज हैं। कुछ धार्मिक ग्रंथों में 84 लाख योनियां कही गयीं हैं तो कुछ में इनकी संख्या 84 लाख एक कही गई है जो निम्न प्रकार से है जिनमें मृत्यु के पश्चात् जीवों को अपने कर्मों के अनुसार भटकना पड़ता है -
वृक्षादि - 20 लाख , जलचर 9 लाख ,
कृमि - 11 लाख , पक्षी 10 लाख,
पशु - 30 लाख , वानर 4 लाख
और मनुष्य - 1, कुल चौरासी लाख एक।
यह तो मात्र योनियां हैं प्रत्येक योनि में कितने कितने प्राणी हैं , फलस्वरूप कितनी आत्माएं हैं, कहा गया है, इनकी गणना करना सम्भव नहीं है। प्रत्येक योनि में जन्म प्राणी के कर्मो के अनुसार होता है।