सनातन का अर्थ क्या है...?

सनातन का अर्थ क्या है...??
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जानिए सनातन धर्म क्या है?

सनातन का अर्थ है जो शाश्वत हो, सदा के लिए सत्य हो!

जिन बातों का शाश्वत महत्व हो वही सनातन कही गई है!

जैसे सत्य सनातन है, ईश्वर ही सत्य है, आत्मा ही सत्य है, मोक्ष ही सत्य है!

और इस सत्य के मार्ग को बताने वाला धर्म ही सनातन धर्म भी सत्य है।

वह सत्य जो अनादि काल से चला आ रहा है और जिसका कभी भी अंत नहीं होगा वह ही सनातन या शाश्वत है!

जिनका न प्रारंभ है और जिनका न अंत है,

उस सत्य को ही सनातन कहते हैं, यही सनातन सत्य है।

वैदिक या हिंदू धर्म को इसलिए सनातन धर्म कहा जाता है, क्योंकि यही एकमात्र धर्म है जो ईश्वर, आत्मा और मोक्ष को तत्व और ध्यान से जानने का मार्ग बताता है!

मोक्ष का कांसेप्ट इसी धर्म की देन है, एकनिष्ठता, ध्यान, मौन और तप सहित यम-नियम के अभ्यास और जागरण का मोक्ष मार्ग है।

अन्य कोई मोक्ष का मार्ग नहीं है, मोक्ष से ही आत्मज्ञान और ईश्वर का ज्ञान होता है

यही सनातन धर्म का सत्य है, सनातन धर्म के मूल तत्व सत्य, अहिंसा, दया, क्षमा, दान, जप, तप, यम-नियम आदि हैं! जिनका शाश्वत महत्व है, अन्य प्रमुख धर्मों के उदय के पूर्व वेदों में इन सिद्धान्तों को प्रतिपादित कर दिया गया था।

असतो मा सदगमय, तमसो मा ज्योर्तिगमय,

मृत्योर्मा अमृतं गमय।। (वृहदारण्य उपनिषद)

अर्थात

हे ईश्वर मुझे असत्य से सत्य की ओर ले चलो, अंधकार से प्रकाश की ओर ले चलो, मृत्यु से अमृत की ओर ले चलो, जो लोग उस परम तत्व परब्रह्म परमेश्वर को नहीं मानते हैं

वे असत्य में गिरते हैं, असत्य से मृत्युकाल में अनंत अंधकार में पड़ते हैं।

उनके जीवन की गाथा भ्रम और भटकाव की ही गाथा सिद्ध होती है,

वे कभी अमृत्व को प्राप्त नहीं होते, मृत्यु आए इससे पहले ही सनातन धर्म के सत्य मार्ग पर आ जाने में ही भलाई है,

अन्यथा अनंत योनियों में भटकने के बाद प्रलयकाल के अंधकार में पड़े रहना पड़ता है।

पूर्णमद: पूर्णमिदं पूर्णात् पूर्णमुदच्यते।

पूर्णस्य पूर्णमादाय पूर्णमेवावशिष्यते।।

(ईश उपनिषद)

सत्य दो धातुओं से मिलकर बना है सत् और तत्,

सत का अर्थ यह और तत का अर्थ वह,

दोनों ही सत्य है, अहं ब्रह्माष्मी और तत्वमसि!

अर्थात मैं ही ब्रह्म हूँ और तुम ही ब्रह्म हो!

यह संपूर्ण जगत ब्रह्ममय है।

ब्रह्म पूर्ण है!

यह जगत् भी पूर्ण है, पूर्ण जगत् की उत्पत्ति पूर्ण ब्रह्म से हुई है! पूर्ण ब्रह्म से पूर्ण जगत् की उत्पत्ति होने पर भी ब्रह्म की पूर्णता में कोई न्यूनता नहीं आती!

वह शेष रूप में भी पूर्ण ही रहता है, यही सनातन सत्य है!

जो तत्व सदा, सर्वदा, निर्लेप, निरंजन, निर्विकार और सदैव स्वरूप में स्थित रहता है उसे सनातन या शाश्वत सत्य कहते हैं।

वेदों का ब्रह्म और गीता का स्थितप्रज्ञ ही शाश्वत सत्य है!

जड़, प्राण, मन, आत्मा और ब्रह्म शाश्वत सत्य की श्रेणी में आते हैं, सृष्टि व ईश्वर (ब्रह्म) अनादि, अनंत, सनातन और सर्वविभु हैं।🌸
राम राम
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