भगवान् गणेशजी की अनसुनी कथा
भगवान गणेशजी की एक अनसुनी कथा।
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अद्भुत देव, जिन्होंने शस्त्र उठाए बिना ही शत्रुओं को कर दिया ढेर।
विकटो नाम विख्यात: कामासुरविदाहक:।
मयूरवाहनश्चायं सौरब्रह्मधर: स्मृत:।।
भगवान श्री गणेश का ‘विकट’ नामक प्रसिद्ध अवतार कामासुर का संहारक है वह मयूर वाहन एवं सौरब्रह्म का धारक माना गया है।
भगवान विष्णु जब जालन्धर के वध हेतु वृंदा का तप नष्ट करने गए थे, उसी समय उनके शुक्र से अत्यंत तेजस्वी कामासुर पैदा हुआ।
कामासुर दैत्य गुरु शुक्राचार्य से दीक्षा प्राप्त कर तपस्या के लिए वन में गया। वहां उसने पच्ञाक्षरी मंत्र का जप करते कठोर तपस्या प्रारंभ की। भगवान शिव की प्रसन्नता के लिए उसने अन्न, जल का त्याग कर दिया। दिन-प्रतिदिन उसका शरीर क्षीण होता गया तथा तेज बढ़ता गया। दिव्य सहस्त्र वर्ष पूरे होने पर भगवान शिव प्रसन्न हुए।
आशुतोष ने प्रसन्न होकर उससे वर मांगने के लिए कहा। कामासुर भगवान शिव के दर्शन कर कृतार्थ हो गया।
उसने भगवान शंकर के चरणों में प्रणाम कर वर-याचना की- ‘प्रभो! आप मुझे ब्रह्माण्ड का राज तथा अपनी भक्ति प्रदान करें। मैं बलवान, निर्भय एवं मृत्युंजयी होऊं।’
भगवान शिव ने कहा, ‘‘यद्यपि तुमने अत्यंत दुर्लभ तथा देव-दुखद वर की याचना की है तथापि मैं तुम्हारी कामना पूरी करता हूं।’’
कामासुर प्रसन्न होकर अपने गुरु शुक्राचार्य के पास लौट आया तथा उन्हें शिव दर्शन तथा वर प्राप्ति का समस्त समाचार सुनाया। शुक्राचार्य ने संतुष्ट होकर महिषासुर की रूपवती पुत्री तृष्णां के साथ उसका विवाह कर दिया।
उसी समय समस्त दैत्यों के समक्ष शुक्राचार्य ने कामासुर को दैत्यों का अधिपति बना दिया। सभी दैत्यों ने उसके अधीन रहना स्वीकार कर लिया।
कामासुर ने अत्यंत सुंदर रतिद नामक नगर में अपनी राजधानी बनाई। उसने रावण, शम्बर, महिष बलि तथा दुर्मद को अपनी सेना का प्रधान बनाया। उस महाअसुर ने पृथ्वी के समस्त राजाओं पर आक्रमण कर उन्हें जीत लिया।
फिर वह स्वर्ग पर चढ़ दौड़ा। इंद्रादि देवता उसके पराक्रम के आगे नहीं ठहर सके। सभी उसके अधीन हो गए। वर के प्रभाव से कामासुर ने कुछ ही समय में तीनों लोकों पर अधिकार प्राप्त कर लिया। उसके राज्य में समस्त धर्म-कर्म नष्ट हो गए। चारों तरफ झूठ, छल-कपट का ही साम्राज्य स्थापित हो गया। देवता, मुनि और धर्म परायण लोग अतिशय कष्ट पाने लगे।
महर्षि मुद्रल की प्रेरणा से समस्त देवता और मुनि मयूरेश क्षेत्र में पहुंचे।
वहां उन्होंने श्रद्धा-भक्तिपूर्वक गणेश जी की पूजा की। देवताओं की उपासना से प्रसन्न होकर मयूरवाहन भगवान गणेश प्रकट हुए। उन्होंने देवताओं से वर मांगने के लिए कहा। देवताओं ने कहा, ‘‘प्रभो! हम सब कामासुर के अत्याचार से अत्यंत कष्ट पा रहे हैं। आप हमारी रक्षा करें।’’
तथास्तु! कह कर भगवान विकट अंतर्धान हो गए। मयूर-वाहन भगवान विकट ने देवताओं के साथ कामासुर के नगर को घेर लिया। कामासुर भी दैत्यों के साथ बाहर आया। भयानक युद्ध होने लगा। उस भीषण युद्ध में कामासुर के दो पुत्र शोषण और दुप्पूर मारे गए।
भगवान विकट ने कामासुर से कहा, ‘‘तूने शिव वर के प्रभाव से बड़ा अधर्म किया है। यदि तू जीवित रहना चाहता है तो देवताओं से द्रोह छोड़कर मेरी शरण में आ जा अन्यथा तुम्हारी मौत निश्चित है।’’
कामासुर ने क्रोधित होकर अपनी भयानक गदा भगवान विकट पर फैंकी। वह गदा भगवान विकट का स्पर्श किए बिना पृथ्वी पर गिर पड़ी। कामासुर मूर्छित हो गया। उसके शरीर की सारी शक्ति जाती रही।
उसने सोचा, ‘‘इस अद्भुत देव ने जब बिना शस्त्र के मेरी ऐसी दुर्दशा कर दी जब शस्त्र उठाएगा तो क्या होगा?’’ वह अंत में भगवान विकट की शरण में आ गया। मयूरेश ने उसे क्षमा कर दिया। देवता और मुनि भयमुक्त हो गए। तीनों दिशाओं में उनकी जय-जयकार होने लगी।
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