जानिए कौन है सप्त चिरंजीवि
*जानिए कौन है सप्त चिरंजीवी*
शतायु प्राप्ति हेतु प्रातः स्मरण करें इन सप्त चिरंजीवियों को
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प्राचीन हिंदू इतिहास और पुराणों के अनुसार ऐसे सात शक्तियां हैं, जो सप्त चिरंजीवी हैं । यह सभी दिव्य शक्तियों से संपन्न है। योग में जिन अष्ट सिद्धियों की बात कही गई है वे सारी शक्तियाँ इनमें विद्यमान है ।। प्राचीन ग्रंथों के अनुसार इनका प्रात: स्मरण करने से मनुष्य दीर्घायु और निरोग रहता है ।
*बलिव्र्यासो हनूमांश्च विभीषण:।*
*कृपाचार्य: मार्कण्डेय परशुरामश्च*
*सप्तएतै चिरजीविन:॥*
अर्थात इन सात शक्तियों (बलि, वेद व्यास, हनुमान, विभीषण, कृपाचार्य, मार्कण्डेय ऋषि और परशुराम जी) का स्मरण सुबह-सुबह करने से सभी रोग समाप्त होते हैं और मनुष्य दीर्घ आयु को प्राप्त करता है।
आइए जानते हैं इन सात अद्भुत और अजर-अमर चिरंजीवियों के बारे में (स्वामी अधीश जी महाराज के प्रवचन से लिया गया अंक)
राजा बलि : शास्त्रों के अनुसार राजा बलि भक्त प्रहलाद के वंशज हैं। बलि ने भगवान विष्णु के वामन अवतार को अपना सब कुछ दान कर दिया था। इसी कारण इन्हें महादानी के रूप में जाना जाता है। राजा बलि से श्रीहरि अतिप्रसन्न थे। इसी वजह से श्री विष्णु राजा बलि के द्वारपाल भी बन गए थे। वरदान स्वरुप राजा बलि को अमरता प्राप्त है।
ऋषि व्यास : ऋषि भी सप्त चिरंजीवी हैँ और इन्होंने चारों वेद (ऋग्वेद, अथर्ववेद, सामवेद और यजुर्वेद) का सम्पादन किया था। साथ ही, इन्होंने ही सभी 18 पुराणों, उप पुराण की रचना की थी । महाभारत और श्रीमद्भागवत् गीता की रचना भी वेद व्यास द्वारा ही की गई है। वेद व्यास, ऋषि पाराशर और सत्यवती के पुत्र थे। इनका जन्म यमुना नदी के एक द्वीप पर हुआ था और इनका रंग सांवला है । इसी कारण ये कृष्ण द्वैपायन कहलाए।
हनुमान जी : कलियुग में हनुमानजी सबसे जल्दी प्रसन्न होने वाले देवता माने गए हैं और हनुमानजी भी इन सप्त चिरंजीवियों में हैं।
भगवान श्री राम के धरती से प्रस्थान के समय, उन्होंने हनुमान जी को भी साथ चलने का आग्रह किया, किंतु हनुमान जी ने उनसे वरदान स्वरुप धरती पर ही रहने का निश्चय किया
हनुमान जी ने भगवान श्रीराम से आशीर्वाद मांगा कि जब तक धरती पर भगवान श्री राम का नाम स्मरण तथा कथा कीर्तन होता रहे वह उनके कथा कीर्तन में अवश्य सम्मिलित होंगे चिरकाल तक l
विभीषण : दशानन रावण के छोटे भाई हैं विभीषण। विभीषण श्रीराम के अनन्य भक्त हैं। जब रावण ने माता सीता का हरण किया था, तब विभीषण ने रावण को श्रीराम से शत्रुता न करने के लिए बहुत समझाया था। इस बात पर रावण ने विभीषण को लंका से निकाल दिया था। विभीषण श्रीराम की सेवा में चले गए और रावण के अधर्म को मिटाने में धर्म का साथ दिया। तब श्रीराम ने उन्हे अमरत्व का वरदान दिया था।
कृपाचार्य : कृपाचार्य कौरवों और पांडवों के गुरू थे। कृपाचार्य महर्षि गौतम शरद्वान् के पुत्र। शरद्वान की तपस्या भंग करने के लिए इंद्र ने जानपदी नामक एक देवकन्या भेजी थी, जिसके गर्भ से दो यमज भाई-बहन हुए। पिता-माता दोनों ने इन्हें जंगल में छोड़ दिया जहाँ महाराज शांतनु ने इनको देखा। इनपर कृपा करके दोनों को पाला पोसा जिससे इनके नाम कृप तथा कृपी पड़ गए। इनकी बहन कृपी का विवाह द्रोणाचार्य से हुआ और उनके पुत्र अश्वत्थामा हुए। अपने पिता के ही सदृश कृपाचार्य भी परम धनुर्धर हुए। कुरुक्षेत्र के युद्ध में राज वचनबद्ध ये कौरवों के साथ थे और उनके नष्ट हो जाने पर पांडवों के पास आ गए। बाद में इन्होंने परीक्षित को अस्त्रविद्या सिखाई। भागवत के अनुसार सावर्णि मनु के समय कृपाचार्य की गणना सप्तर्षियों में होती है ।
ऋषि मार्कण्डेय : भगवान शिव के परम भक्त थे ऋषि मृकंड, तपस्या के फलस्वरूप इन्होंने भगवान शिव से मार्कंडेय पुत्र प्राप्त किया । बालक मार्कंडेय ने भगवान शिवजी को बाल्यावस्था मे कठोर तप कर प्रसन्न किया और महामृत्युंजय मंत्र सिद्धि के कारण चिरंजीवी बन गए। शिव जी को 'महामृत्युजंय' जाप द्वारा प्रसन्न करके अपनी आयु पूर्ण करने वाले बालक मार्कण्डेय शिवजी के परम भक्त थे।
भगवान परशुराम : भगवान श्री विष्णु के छठें अवतार हैं परशुराम जी । परशुराम जी के पिता ऋषि जमदग्नि और माता रेणुका थीं। इनका जन्म हिन्दी पंचांग के अनुसार वैशाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को हुआ था। इसलिए वैशाख मास के शुक्ल पक्ष में आने वाली तृतीया को अक्षय तृतीया कहा जाता है। परशुराम जी का जन्म समय सतयुग और त्रेता के संधिकाल में माना जाता है। भगवान परशुराम का प्रारंभिक नाम राम था, हाथ मे परशु / फरसा (शस्त्र) होने से इन्हें परशुराम कहा जाता है । भगवान परशुराम ने शिवजी के शिष्य है तथा धरती पर पापियों के संहार के लिए इन्हें अमर होने का वरदान मिला है।
📝 मनुज देव भारद्वाज (श्री द्वारिकाधीश आश्रम)
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