Posts

Showing posts from July, 2020

हमारे ऋषियों और मुनियों द्वारा किये गये आविष्कार

हमारे ऋषियों और मुनियों द्वारा किये गये आविष्कार! 🚩🕉️🌹🍁🚩🕉️🌹🍁🌞🚩🕉️ महर्षि दधीचि : - महातपोबलि और शिव भक्त ऋषि थे। वे संसार के लिए कल्याण व त्याग की भावना रख वृत्तासुर का नाश करने के लिए अपनी अस्थियों का दान करने की वजह से महर्षि दधीचि बड़े पूजनीय हुए। इस संबंध में पौराणिक कथा है कि एक बार देवराज इंद्र की सभा में देवगुरु बृहस्पति आए। अहंकार से चूर इंद्र गुरु बृहस्पति के सम्मान में उठकर खड़े नहीं हुए। बृहस्पति ने इसे अपना अपमान समझा और देवताओं को छोड़कर चले गए। देवताओं ने विश्वरूप को अपना गुरु बनाकर काम चलाना पड़ा, किंतु विश्वरूप देवताओं से छिपाकर असुरों को भी यज्ञ-भाग दे देता था। इंद्र ने उस पर आवेशित होकर उसका सिर काट दिया। विश्वरूप त्वष्टा ऋषि का पुत्र था। उन्होंने क्रोधित होकर इंद्र को मारने के लिए महाबली वृत्रासुर को पैदा किया। वृत्रासुर के भय से इंद्र अपना सिंहासन छोड़कर देवताओं के साथ इधर-उधर भटकने लगे। ब्रह्मादेव ने वृत्तासुर को मारने के लिए वज्र बनाने के लिए देवराज इंद्र को तपोबली महर्षि दधीचि के पास उनकी हड्डियां मांगने के लिये भेजा। उन्होंने महर्षि से प्रार्थना करते ह...

हमारे ऋषियों ने वेदों को कैसे सुरक्षित रखा ?

हमारे ऋषियों ने वेदों को कैसे सुरक्षित रखा ?  🕉️🍁🚩🌞🌹🕉️🍁🚩🌞🌹🕉️ जाने वेदों में रत्ती भर भी मिलावट क्यों नही हो सकी ? जब कोई सनातनी ये बताने की कोशिश करता हैं की हमारे ज्यादातर ग्रंथों में मिलावट की गई है तो वो वेदों पर भी ऊँगली उठाते हैं की अगर सभी में मिलावट की गई है तो वेदों में भी किसी ने मिलावट की होगी....परन्तु ऐसा नही हैं क्यों नही हैं जानते हैं..वेदों को सुरक्षित रखने के लिए उनकी अनुपुर्वी, एक-एक शब्द और एक एक अक्षर को अपने मूल रूप में बनाये रखने के लिए जो उपाय किये गए उन्हें आज कल की गणित की भाषा में 'Permutation and combination' (क्रमपरिवर्तन और संयोजन) कहा जा सकता हैं.. वेद मन्त्र को स्मरण रखने और उनमे एक मात्रा का भी लोप या विपर्यास ना होने पाए इसके लिए उसे 13 प्रकार से याद किया जाता था.... याद करने के इस उपाय को दो भागों में बांटा जा सकता हैं.... प्रकृति-पाठ और विकृति-पाठ.... प्रकृति पाठ का अर्थ हैं मन्त्र को जैसा वह है वैसा ही याद करना.... विकृति- पाठ का अर्थ हैं उसे तोड़ तोड़ कर पदों को आगे पीछे दोहरा-दोहरा कर भिन्न-भिन्न प्रकार से याद करना.... याद करने के इ...

संस्कृत भाषा का कोई विकल्प नहीं

संस्कृत भाषा का कोई विकल्प नहीं है. अंग्रेजी में A QUICK BROWN FOX JUMPS OVER THE LAZY DOG एक प्रसिद्ध वाक्य है. अंग्रेजी वर्णमाला के सभी अक्षर उसमें समाहित हैं. किन्तु कुछ कमियाँ भी हैं या यों कहिए कि कुछ कलाकारियाँ किसी अंग्रेजी वाक्य से हो नहीं सकतीं. 1) अंग्रेजी में 26 अक्षर हैं और यहां जबरन 33 का उपयोग करना पड़ा है. चार O हैं और A,E,U,R दो-दो हैं. 2) अक्षरों का ABCD.. यह स्थापित क्रम नहीं दिख रहा है. सब अस्तव्यस्त है. अब संस्कृत में चमत्कार देखिये! क:खगीघाङ्चिच्छौजाझाञ्ज्ञोटौठीडढण:। तथोदधीन पफर्बाभीर्मयोSरिल्वाशिषां सह।। अर्थात्- पक्षियों का प्रेम, शुद्ध बुद्धि का, दूसरे का बल अपहरण करने में पारंगत, शत्रु-संहारकों में अग्रणी, मन से निश्चल तथा निडर और महासागर का सर्जन करनार कौन? राजा मय जिसे शत्रुओं के भी आशीर्वाद मिले हैं. आप देख सकते हैं कि संस्कृत वर्णमाला के सभी 33 व्यंजन इस पद्य में आ जाते हैं. इतना ही नहीं, उनका क्रम भी यथायोग्य है. एक ही अक्षर का अद्भुत अर्थ विस्तार. माघ कवि ने शिशुपालवधम् महाकाव्य में केवल "भ" और "र", दो ही अक्षरों से एक श्लोक बनाया है- ...

श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ के रुद्राभिषेक से होते हैं आश्चर्यजनक लाभ

श्रावण मास में भगवान भोलेनाथ के रुद्राभिषेक से होते हैं आश्चर्यजनक लाभ - हमारे धर्मग्रंथों के अनुसार हमारे द्वारा किए गए पाप ही हमारे दु:खों के कारण हैं। रुद्रार्चन और रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली से पातक कर्म एवं महापातक भी जलकर भस्म हो जाते हैं और साधक में शिवत्व का उदय होता है तथा भगवान शिव का शुभाशीर्वाद भक्त को प्राप्त होता है और उनके सभी मनोरथ पूर्ण होते हैं। ऐसा कहा जाता है कि एकमात्र सदाशिव रुद्र के पूजन से सभी देवताओं की पूजा स्वत: हो जाती है। रुद्रहृदयोपनिषद में शिव के बारे में कहा गया है कि सर्वदेवात्मको रुद्र: सर्वे देवा: शिवात्मका अर्थात सभी देवताओं की आत्मा में रुद्र उपस्थित हैं और सभी देवता रुद्र की आत्मा हैं। हमारे शास्त्रों में विविध कामनाओं की पूर्ति के लिए रुद्राभिषेक के पूजन के निमित्त अनेक द्रव्यों तथा पूजन सामग्री को बताया गया है। साधक रुद्राभिषेक पूजन विभिन्न विधि से तथा विविध मनोरथ को लेकर करते हैं। किसी खास मनोरथ की पूर्ति के लिए तदनुसार पूजन सामग्री तथा विधि से रुद्राभिषेक किया जाता है। रुद्राभिषेक के 18 आश्चर्यजनक लाभ    रुद्राभिषेक से हमारी कुंडली के...

शिव महिमा

*☆☆☆ *शिव गाथा* ☆☆☆* *शिव रूद्र है, भीम है, उग्र है।* *शिव चराचर में अव्यग्र है।* *शिव भव है, शर्व है, सर्वज्ञ है।* *शिव मयी यत्र-तत्र-सर्वत्र है।* *शिव कल्याण है, योग है, वैराग है।* *शिव तम में ज्ञान रूपी प्रकाश है।* *शिव अज है, अनादि है, अनन्त है।* *शिव राख लपेटे अघोरी सन्त है।* *शिव अजेय है, शम्भू है, अभय है।* *शिव मृत्युलोक में मृत्युञ्जय है।* *शिव सृजन है, पालक है, तारक है।* *शिव नीलकण्ठ कभी संहारक है।* *शिव माया है, त्रिनेत्र है, त्रिकाल है।* *शिव शीतलता लिए चन्द्रभाल है।* *शिव सत्य है, देवत्व है, शुभत्व है ।* *शिव नश्वर जगत में शिवत्व है।* *शिव जप है, तप है, आदिगुरु है।* *शिव चर-अचर में जगद्गुरु है।* *शिव अव्यक्त है, वृषांक है, हर है।* *शिव प्रजापालक है,गिरीश्वर है।* *शिव भर्ग है, अनघ है, भूतपति है।* *शिव नन्दी पर सवार पशुपति है।* *शिव अजर है, अमर है, अविनाशी है।* *शिव कण कण में रमता कैलाशी है।* *शिव अज है, शाश्वत है, दिगम्बर है।* *शिव त्रिदेवों में पूजनीय महेश्वर है।* *शिव जटाधारी है, शंकर है, अनीश्वर है।* *शिव सकल सृष्टि का पूज्य परमेश्वर है।* *शिव बाघम्बरी है, सोम है, मृगपाणी...

दुनिया का तीसरा बड़ा मंदिर होगा अयोध्या राम मंदिर

दुनिया का तीसरा बड़ा मंदिर होगा अयोध्या राम मंदिर, जानें इससे भी बड़े मंदिर कहां है स्थित 🚩🕉️🍁🚩🕉️🍁🚩🕉️🍁🚩🕉️ अयोध्या में बनने वाले रामंदिर का नक्शा करीब 37 साल पहले बनाया गया था। इस मंदिर को और अधिक भव्य और बड़ा बनाने के लिए इसमें थोड़ा बदलाव किया जा रहा है। पर आपको जानकर आश्चर्य होगा कि विश्व का सबसे बड़ा और भव्य मंदिर भारत में नहीं बल्कि विदेश में है। यह कंबोडिया में स्थापित अंकोरवाट मंदिर है। करीब 67 एकड़ में प्रस्तावित अयोध्या के राममंदिर का दायरा भी अब 100 से 120 एकड़ तक हो सकता है। ऐसे में यह बड़े मंदिरों की श्रेणी में तीसरे स्थान पर आएगा। आइए एक नजर डालते हैं विश्व के सबसे बड़े मंदिरों पर। अंकोरवाट मंदिर अंकोरवाट मंदिर के शिखर की ऊंचाई 213 फीट है। अंकोरवाट दुनिया का सबसे बड़ा धार्मिक स्मारक है, जो करीब 162.6 हेक्टेयर यानी 401 एकड़ में फैला है। इसे मूल रूप से खमेर साम्राज्य में भगवान विष्णु का मंदिर के रूप में बनाया गया था। मीकांग नदी के किनारे सिमरिप शहर में बना यह मंदिर आज भी संसार का सबसे बड़ा हिंदू मंदिर है। श्रीरंगनाथ मंदिर तमिलनाडु स्थित त्रिची में बना श्रीरंग...

What is the correct word "Sanskrit or Samskrit

What is the correct word *"Sanskrit or Samskrit"* The University Grants Commission has kicked off a controversy by using the word “Samskrit” for our most ancient language instead of “Sanskrit.” Everyone initially thought a typo, spelling mistake in a circular by UGC chairman Ved Prakash on January 21, asking the vice-chancellors and heads of 126 higher education institutions to send details of faculty engaged in teaching “Samskrit.” “The UGC is in the process of devising a scheme for further development and promotion of Samskrit teaching in the country. As part of this endeavour, the UGC, in order to coordinate the work of universities, proposes a database of teachers engaged in teaching and learning in Samskrit,” the circular said. The UGC officials, however, said it was not a typo but deliberate “to correct a historical wrong” because of a wrong spelling picked up by the Britishers two centuries ago and nobody objecting. The UGC took the decision to use the 13th letter of t...

रामायण हमे सिखाती हैं की भाग्य से बड़ा कोई नही

रामायण हमे सिखाती हैं की भाग्य से बड़ा कोई नही... रामचंद्र जी को चक्रवर्ती राजा के पुत्र होने के बाद भी जीवन भर कष्ट मिला... राजगद्दी छूटी.... वनवास मिला.... घर परिवार सब छूट गया.... राज्य एवं प्रजा सब छूट गया.... पिता के अंतिम दर्शन भी नही हुए.... पिता को मुखाग्नि तक नही दे सके.... नंगे पांव जंगल जंगल भटकते रहे.... पत्नी वियोग मिला.... रावण से युद्ध करना पड़ा.... पत्नी की अग्निपरीक्षा लेनी पड़ी... पुत्र सुख भी नही मिला.... पत्नी का त्याग भी करना पड़ा.... ईश्वर होते हुए भी एक मानव की तरह दुःख भोगने पड़े... और भाग्य की विडंबना देखिए,,, कलयुग में भगवान श्री राम का मंदिर तोड़ दिया गया.... कई सौ साल बाद जब मस्जिद के नीचे मंदिर मिला तो.... कई वर्ष लग गए न्यायालय में जन्मस्थान को पाने के लिए.... जन्मस्थान प्रमाणित करने में पूरे भारत को कई वर्ष लग गए.... अब जब प्रमाणित हुआ और आज अयोध्या में बहुत बड़ा आयोजन होना था । रामनवमी के दिन मंदिर की पहली ईंट रखनी थी, लेकिन भाग्य क़ो वो भी स्वीकार नही था। आज कितना बड़ा आयोजन होता लेकिन Lockdown की वजह से सब स्थगित हों गया ।। प्रभु श्रीराम जी का जीवन पहले भी बहु...

ओंकार की 19 शक्तियाँ

Image
ओंकार की 19 शक्तियाँ ~~~~~~~~~~~~~~ सारे शास्त्र-स्मृतियों का मूल है वेद। वेदों का मूल गायत्री है और गायत्री का मूल है ओंकार। ओंकार से गायत्री, गायत्री से वैदिक ज्ञान, और उससे शास्त्र और सामाजिक प्रवृत्तियों की खोज हुई। पतंजलि महाराज ने कहा हैः तस्य वाचकः प्रणवः। परमात्मा का वाचक ओंकार है। सब मंत्रों में ॐ राजा है। ओंकार अनहद नाद है। यह सहज में स्फुरित हो जाता है। अकार, उकार, मकार और अर्धतन्मात्रायुक्त ॐ एक ऐसा अदभुत भगवन्नाम मंत्र है कि इस पर कई व्याखयाएँ हुई। कई ग्रंथ लिखे गये। फिर भी इसकी महिमा हमने लिखी ऐसा दावा किसी ने किया। इस ओंकार के विषय में ज्ञानेश्वरी गीता में ज्ञानेश्वर महाराज ने कहा हैः ॐ नमो जी आद्या वेदप्रतिपाद्या जय जय स्वसंवेद्या आत्मरूपा । परमात्मा का ओंकारस्वरूप से अभिवादन करके ज्ञानेश्वर महाराज ने ज्ञानेश्वरी गीता का प्रारम्भ किया । धन्वंतरी महाराज लिखते हैं कि ॐ सबसे उत्कृष्ट मंत्र है। वेदव्यासजी महाराज कहते हैं कि प्रणवः मंत्राणां सेतुः। यह प्रणव मंत्र सारे मंत्रों का सेतु है। ******************************************** कोई मनुष्य दिशाशून्य हो गया हो,...

आमलक समुद्र मंथन में प्रयोग किए गए मंदार का प्रतिनिधित्व करता है

Image
"आमलक" नागर स्थापत्य शिला में मंदिर शिखर  के महत्वपूर्ण तत्वों में से एक है जो आमतौर पर उत्तर भारत में पाया जाता है। यह तत्व जिज्ञासा को बढ़ाता है, क्योंकि यह सभी नागर और वेसरा शैली के मंदिरों में प्रमुखता से दिखाई देता है, यह शायद ही कभी शिल्पशास्त्रों में होता है। ऐसा ही एक उल्लेख "मायातम" पाठ से "मंदिर के परिपत्र मुकुट" के रूप में है। आमलक बहुत महत्वपूर्ण है क्योंकि यह यूरोपीय इमारतों के मेहराब में "Key Stone" की तरह मंदिर को बरकरार रखने की कुंजी है। इस बात के पर्याप्त प्रमाण हैं कि जिन शिखरों का आमलक गिरा था वे बाद में जीवित नहीं रहे। यही कारण है कि कोणार्क के "कलपहाड़" की लूट "कोणार्क शिखर" के "आमलक" को नीचे लाने पर केंद्रित थी यह "आमलक" क्या है? 1. यह अमृत घटा /कलश का आधार है जो समुद्र मंथन के दौरान प्राप्त हुआ था। तो, आमलक समुद्र मंथन में इस्तेमाल किए गए मंदार का प्रतिनिधित्व करता है। 2. यह अमलकी फल की तरह दिखाई देता है जिसमें श्री विष्णु निवास करते हैं। यह श्री विष्णु के आँसुओं से जग उठा...

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा

वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा 12 ज्योतिर्लिंगों में से नवां ज्योतिर्लिंग वैद्यनाथ है, जो झारखंड के देवघर नामक स्थान पर स्थित है। इससे जुड़ी कथा शिवपुराण के कोटिरुद्रसंहिता में वर्णित है। इस ज्योतिर्लिंग के स्थान विवादास्पद है। 🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩🚩 पहला देवघर झारखण्ड, दूसरा परली महाराष्ट्र, तीसरा बैजनाथ हिमाचल प्रदेश को बताया गया है। 12 ज्योतिर्लिंगों के अनुसार यह ज्योतिर्लिंग महाराष्ट्र के परली में स्थित है, शिव पुराण के अनुसार ये ज्योतिर्लिंग सीताभूमि के पास स्थित बताया गया है। यह स्थान 51 शक्तिपीठों में से एक है। यहाँ देवी सती का ह्रदय गिरा था। इसीलिए इस स्थान को हार्दपीठ भी कहा जाता है। इस स्थान के बारे में वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग विवादस्पद है लेकिन कथा एक ही है। वैद्यनाथ ज्योतिर्लिंग का इतिहास व कथा --- इतिहास व कहानी इस ज्योतिर्लिंग की कथा इस प्रकार है। राक्षस रावण कैलाश पर्वत पर भगवान शिव जी की आराधना कर रहा था। परन्तु कई वर्षों तक तप करने के बाद जब महादेव जी प्रसन्न नहीं हुए तब रावण ने शिव जी को प्रसन्न करने के लिए दूसरा तप शुरू किया। इस तप से भी महादेव ज...

अधर्मी के साथ अधर्म करना, धर्मानुसार नीतिसंगत है

🌹 अधर्मी के साथ अधर्म करना, धर्मानुसार नीतिसंगत है 👉यदि अर्जुन, निहत्थे कर्ण पर बाण नही चलाता तो कर्ण का मरना असंभव था...! 👉गदा युद्ध मे नियमों के विरुद्ध भीम जंघा पर वार नही करता तो दुर्योधन का मरना असंभव था...! 👉रणभूमि मे गंगापुत्र भीष्म के सामने शिखंडी को ढाल नही बनाया जाता तो भीष्म का मरना असंभव था....! 👉"अश्वथामा मारा गया" कहते वक्त शंखनाद करके युद्धिष्ठिर के वचन को दबाया नही गया होता तो द्रोणाचार्य का वध नही होता.... 👉यदि वासुदेव के कहने पर सूर्यदेव समय से पहले सूर्यास्त का नाटक नही करते तो जयद्रथ नही मरता....! अधर्मी के साथ अधर्म करना,छल करना, कपटपूर्ण व्यवहार करना सब नीतिसंगत है...! यही धर्मयुद्ध है...!! धर्म की जीत हो, अधर्म का नाश हो l प्राणियों मे सद्भावना हो, विश्व का कल्याण हो ll #जयश्रीकृष्ण 🙏🏼🚩

गौमाता की महिमा

~~~ गौमाता की महिमा ~~~ गाय के 40 मण दूध यानी 40X40 kg *(कच्छ समेत कई विस्तारों में मण 20 नही 40kg होता है)* लगभग 1600 kg दूध में 10 gram एक तौला सोना Gold होता है ।  🐂🥇🌟✨🐂🥇🌟✨🐂🥇🌟✨🐂🥇🌟 अमेरिका के कृषि विभाग द्वारा प्रकाशित हुई पुस्तक *"THE COW IS A WONDERFUL LABORATORY ”* के अनुसार प्रकृति ने समस्त जीव-जंतुओं और सभी दुग्धधारी जीवों में केवल गाय ही है जिसे ईश्वर ने 180 फुट (2160 इंच ) लम्बी आंत दी है जिसके कारण गाय जो भी खाती-पीती है वह अंतिम छोर तक जाता है। जिस प्रकार दूध से मक्खन निकालने वाली मशीन में जितनी अधिक गरारियां लगायी जाती है उससे उतना ही वसा रहित मक्खन निकलता है, इसीलिये गाय का दूध सर्वोत्तम है । *गो वात्सल्य* :-👉 गौ माता बच्चा जनने के 18 घंटे तक अपने बच्चे के साथ रहती है और उसे चाटती है इसीलिए वह लाखो बच्चों में भी वह अपने वच्चे को पहचान लेती है जवकि भैंस और जरसी अपने बच्चे को नहीं पहचान पायेगी। गाय जब तक अपने बच्चे को अपना दूध नहीं पिलाएगी तब तक दूध नहीं देती है, जबकि भैस, जर्सी होलिस्टयन के आगे चारा डालो और दूध दुह लो। *आजके बच्चो में क्रूरता इसीलिए बढ़ र...

Sanskrit: A Language of Science

Image
Sanskrit: A Language of Science   "The Sanskrit language, whatever be its antiquity, is of wonderful structure; more perfect than the Greek, more copious than the Latin, and more exquisitely refined than either”—Sir William Jones (1675-1749)   Sanskrit is perhaps the oldest and the most prolific language known to mankind. Since the Rigveda- the oldest written scripture in the world is in Sanskrit; the origin of Sanskrit as language must precede the Rigveda. Scholars admit of the considerable influence of Sanskrit on Tamil, Greek and Latin which are considered other ancient languages of the world. Sanskrit is also called the mother of languages as most of the Asian and European languages find their origin in Sanskrit. ‘Indo-European languages’ is a term coined by the Europeans to acknowledge the origin of European languages from Sanskrit. Scholars distinguish between Vedic Sanskrit and its descendant Classical Sanskrit; however, these two varieties are very similar and differ m...

श्री अधीश जी महाराज के मुखारविंद से धर्म प्रवचन | श्री द्वारिकाधीश आश्रम |

Image

स्वस्तिक ज्ञान, उपयोग एवं महत्व

Image
स्वास्तिक अत्यन्त प्राचीन काल से भारतीय संस्कृति में मंगल-प्रतीक माना जाता है। इसीलिए किसी भी शुभ कार्य को करने से पहले स्वास्तिक चिन्ह अंकित करके उसका पूजन किया जाता है। स्वास्तिक शब्द सु अस क से बना है। ‘सु’ का अर्थ अच्छा, ‘अस’ का अर्थ ‘सत्ता’ या ‘अस्तित्व’ और ‘क’ का अर्थ ‘कर्त्ता’ या करने वाले से है। इस प्रकार ‘स्वास्तिक’ शब्द का अर्थ हुआ ‘अच्छा’ या ‘मंगल’ करने वाला। स्वस्तिक में एक दूसरे को काटती हुई दो सीधी रेखाएँ होती हैं, जो आगे चलकर मुड़ जाती हैं। इसके बाद भी ये रेखाएँ अपने सिरों पर थोड़ी और आगे की तरफ मुड़ी होती हैं। स्वास्तिक की यह आकृति दो प्रकार की हो सकती है। प्रथम स्वास्तिक - जिसमें रेखाएँ आगे की ओर इंगित करती हुई हमारे दायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘स्वास्तिक’ (卐) कहते हैं। द्वितीय स्वास्तिक - आकृति में रेखाएँ पीछे की ओर संकेत करती हुई हमारे बायीं ओर मुड़ती हैं। इसे ‘वामावर्त स्वस्तिक’ (卍) कहते हैं। जर्मनी के हिटलर के ध्वज में यही ‘वामावर्त स्वास्तिक’ अंकित था, जिसने उसका अंत किया। बुल्गारिया में 7000 वर्ष पहले इस्तेमाल होता था, आपको आश्चर्य होगा लेकिन यह सत्य है पश्चिमी बुल्...